ऑर्फेनगंज मार्केट अग्निकांड : कोलकाता नगर निगम के समक्ष पुनर्वास और पुनर्निर्माण की दोहरी जिम्मेदारी

आग में जलकर राख हुई ऑर्फेनगंज मार्केट में स्थित एक दुकान
आग में जलकर राख हुई ऑर्फेनगंज मार्केट में स्थित एक दुकान
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कोलकाता : ऑर्फेनगंज मार्केट में रविवार देर रात लगी भीषण आग ने न सिर्फ बाजार को राख कर दिया, बल्कि सैकड़ों दुकानदारों की आजीविका पर भी संकट खड़ा कर दिया है। सोमवार की सुबह तक दमकल कर्मियों ने आग पर काबू पा लिया, लेकिन तबाही ने अपने पीछे प्रशासन के सामने एक कठिन चुनौती खड़ा कर दी है। दुकानदारों का तत्काल पुनर्वास और मार्केट का पुनर्निर्माण कोलकाता नगर निगम की दोहरी जिम्मेदारी है। सूत्रों के अनुसार, लगभग चार वर्ष पहले ऑर्फेनगंज मार्केट को दक्षिण 24 परगना के तत्कालीन जिला अधिकारी के माध्यम से कोलकाता नगर निगम को हस्तांतरित किया गया था। इसके बाद से यह बाजार केएमसी के मार्केट विभाग के अधीन संचालित हो रहा है।

800 से अधिक पंजीकृत दुकानदार हैं

केएमसी सूत्रों के अनुसार वर्तमान में बाजार में करीब 800 पंजीकृत दुकानदार हैं, जो नियमित रूप से निगम को किराया अदा करते हैं। इसके अलावा 100 से अधिक अस्थायी विक्रेता भी निगम में पंजीकृत हैं। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि पंजीकृत और गैर-पंजीकृत दुकानदारों को मिलाकर यह संख्या लगभग 1200 तक पहुंचती है। इस भयावह आग ने सभी का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। इस विपत्ति की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घटनास्थल की स्थिति का जायजा लिया और सोमवार की दोपहर घोषणा की कि 'सरकार अपने खर्च पर मार्केट का पुनर्निर्माण कराएगी। जिस दुकानदार की जहां दुकान थी, उसे वहीं दोबारा दुकान बनाकर दी जाएगी।' मुख्यमंत्री ने बताया कि कोलकाता के मेयर और स्थानीय पार्षद ने मार्केट के समीप एक अस्थायी स्थल चिह्नित किया है, जहां फिलहाल सभी प्रभावित दुकानदारों को स्थानांतरित किया जाएगा।

पुनर्वास की राह कठिन

हालांकि सरकार की मंशा स्पष्ट है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। कोलकाता नगर निगम के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सभी दुकानदारों को अस्थायी स्थान कैसे और कितनी जल्दी उपलब्ध कराए जाएं। साथ ही, स्थायी, अस्थायी और गैर-पंजीकृत दुकानदारों की सही पहचान और उनकी वैधता कैसे तय की जाए? सूत्रों के अनुसार, केएमसी हर एक दुकानदार की पहचान, दस्तावेज और क्षति का आकलन करेगा। इस बाबत एक सर्वे टीम को नियुक्त किया जा सकता है ताकि पुनर्वास की प्रक्रिया निष्पक्ष और व्यवस्थित रूप से पूरी की जा सके।

बीमा और मुआवजे की चिंता

इस बीच, कई दुकानदारों ने यह चिंता भी जताई कि उनके पास बीमा सुरक्षा नहीं थी, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। एक पीड़ित दुकानदार ने कहा, 'हमारी सारी जमा पूंजी जलकर खाक हो गई। अब जीने के लिए भी मदद चाहिए। बीमा नहीं होने के कारण कहीं से कोई मुआवजा नहीं मिलेगा।'

उम्मीद की राख में भविष्य की खोज

खिदिरपुर जैसे घनी आबादी वाले और संकरी गलियों से भरे इलाके में इतने बड़े स्तर पर पुनर्वास करना केएमसी के लिए प्रशासनिक और तकनीकी दृष्टि से एक बड़ी परीक्षा है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि निगम, और जनप्रतिनिधि मिलकर इस चुनौती से कैसे निपटते हैं। फिलहाल, प्रभावित दुकानदार अस्थायी व्यवस्था की मांग के साथ शीघ्र पुनर्निर्माण की आशा लिए सरकार की हर घोषणा पर निगाहें गड़ाए बैठे हैं।

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