भारत के रिटेल बूम ने वैश्विक निवेश को किया आकर्षित

पश्चिमी देशों के मॉल संकट से जूझ रहे हैं
भारत के रिटेल बूम ने वैश्विक निवेश को किया आकर्षित
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : जहां पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में शॉपिंग मॉल अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं, वहीं वैश्विक पूंजी का रुख भारत के मॉल सेक्टर की ओर तेजी से बढ़ा है। मजबूत उपभोग वृद्धि और संस्थागत निवेशकों के भरोसे ने वैश्विक रिटेल चुनौतियों के बीच भारत को एक आकर्षक गंतव्य बना दिया है।

अमेरिका में 2020 के बाद से लगभग 1,200 मॉल स्टोर्स बंद हो चुके हैं। बढ़ती रिक्तता के चलते करीब 40% खाली मॉल्स को दोबारा ज़ोनिंग या किसी अन्य उपयोग में बदला जा रहा है। इसके विपरीत, एनारॉक रिसर्च एंड एडवाइजरी के अनुसार अगले तीन वर्षों में भारत के मॉल सेक्टर में 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश आने की संभावना है।

सर्वे के मुताबिक “ताजा आंकड़ों के अनुसार, अगले तीन वर्षों में भारतीय मॉल्स में 3.5 अरब डॉलर से अधिक की पूंजी आएगी। इस बीच 88 से अधिक विदेशी ब्रांड भारतीय रिटेल बाजार में प्रवेश कर चुके हैं और आक्रामक विस्तार की तैयारी में हैं। कई अन्य वैश्विक ब्रांड भी पाइपलाइन में हैं, जो सीमित उपलब्ध ग्रेड-ए रिटेल स्पेस की तलाश में हैं।” पश्चिमी बाजारों के उलट, भारत में युवा आबादी से उत्पन्न भारी अपूर्ण मांग, संगठित रिटेल की सीमित प्रतिस्पर्धा और अनुकूल एफडीआई नीतियों ने विदेशी ब्रांड्स और निवेशकों को आकर्षित किया है। भारत में प्रति व्यक्ति संगठित रिटेल स्पेस अभी भी कम है। टियर-1 शहरों में यह केवल 4–6 वर्ग फुट प्रति व्यक्ति है, जबकि टियर-2 और टियर-3 शहरों में 2–3 वर्ग फुट। ग्रेड-ए मॉल स्पेस तो महज 0.6 वर्ग फुट प्रति व्यक्ति है। इसकी तुलना में अमेरिका में औसतन 23 वर्ग फुट और चीन में 6 वर्ग फुट से अधिक है।

“यह अंतर, पिछले एक दशक में भारत की प्रति व्यक्ति आय के लगभग दोगुना होने के साथ मिलकर, मांग–आपूर्ति का ऐसा असंतुलन पैदा कर रहा है जो वैश्विक रिटेल बाजारों में दुर्लभ है। ग्रेड-ए मॉल्स लगभग पूरी तरह भरे हुए हैं, जहां 95–100% लीज़िंग हो चुकी है और प्रमुख ज़ोन्स के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट है। किराए की वृद्धि लगातार महामारी-पूर्व स्तरों से ऊपर रही है, और अब लीज़िंग चक्र निर्माण चक्र से भी तेज हो गया है।” भारत की उपभोग अर्थव्यवस्था 2030 तक 6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की राह पर है, जिसे युवा जनसंख्या, बढ़ती आय और तेज शहरीकरण का समर्थन प्राप्त है। प्रमुख मॉल्स में सप्ताह के दिनों में रोज़ाना 20,000 से अधिक और सप्ताहांत में 40,000 से ज्यादा फुटफॉल दर्ज किया जा रहा है। इसमें 30–35% हिस्सेदारी एफ एंड बी (खाद्य एवं पेय) और मनोरंजन की है।

निवेशकों की बढ़ती रुचि के कारण गुणवत्ता वाले रिटेल एसेट्स के लिए प्रतिस्पर्धा भी तेज हो गई है। देश में मौजूद 600 से अधिक ऑपरेशनल मॉल्स में से 100 से भी कम संस्थागत मानकों पर खरे उतरते हैं। ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव के बावजूद भारतीय मॉल्स को इससे नुकसान नहीं बल्कि फायदा हुआ है। भारत में ऑनलाइन रिटेल की पैठ लगभग 8% है, जो अमेरिका और चीन की तुलना में काफी कम है। कई ब्रांड अब ‘फिजिटल’ मॉडल अपना रहे हैं, जहां ऑफलाइन स्टोर्स अनुभव और भरोसा बनाते हैं, जबकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्केल प्रदान करते हैं।

भारत के ग्रेड-ए मॉल्स आमतौर पर 14–18% तक का आंतरिक रिटर्न (आईआरआर) देते हैं, जो कई पश्चिमी बाजारों की तुलना में लगभग दोगुना है। किराया वृद्धि, उपभोग-आधारित रेवेन्यू शेयरिंग और कम रिक्तता इसे दीर्घकालिक निवेश के लिए आकर्षक बनाते हैं।

“यही भारत को दुनिया के प्रमुख रिटेल बाजारों में विशिष्ट बनाता है। अमेरिका और यूरोप में मॉल्स अत्यधिक आपूर्ति, घटते फुटफॉल और ऑनलाइन प्रतिस्पर्धा से जूझ रहे हैं। इसके विपरीत, भारत में गुणवत्ता वाली आपूर्ति सीमित है, आय बढ़ रही है, फुटफॉल भारी है और ब्रांड विस्तार तेज़ी से हो रहा है। 2025 की पहली छमाही में भारत में रिटेल लीज़िंग लगभग 70% साल-दर-साल बढ़ी है, जबकि नए मॉल सप्लाई में 160% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।”

“यह अंतर, पिछले एक दशक में भारत की प्रति व्यक्ति आय के लगभग दोगुना होने के साथ मिलकर, मांग–आपूर्ति का ऐसा असंतुलन पैदा कर रहा है जो वैश्विक रिटेल बाजारों में दुर्लभ है। ग्रेड-ए मॉल्स लगभग पूरी तरह भरे हुए हैं, जहां 95–100% लीज़िंग हो चुकी है और प्रमुख ज़ोन्स के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट है। किराए की वृद्धि लगातार महामारी-पूर्व स्तरों से ऊपर रही है, और अब लीज़िंग चक्र निर्माण चक्र से भी तेज हो गया है।” भारत की उपभोग अर्थव्यवस्था 2030 तक 6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की राह पर है, जिसे युवा जनसंख्या, बढ़ती आय और तेज़ शहरीकरण का समर्थन प्राप्त है। प्रमुख मॉल्स में सप्ताह के दिनों में रोज़ाना 20,000 से अधिक और सप्ताहांत में 40,000 से ज्यादा फुटफॉल दर्ज किया जा रहा है। इसमें 30–35% हिस्सेदारी एफ एंड बी (खाद्य एवं पेय) और मनोरंजन की है।

निवेशकों की बढ़ती रुचि के कारण गुणवत्ता वाले रिटेल एसेट्स के लिए प्रतिस्पर्धा भी तेज हो गई है। देश में मौजूद 600 से अधिक ऑपरेशनल मॉल्स में से 100 से भी कम संस्थागत मानकों पर खरे उतरते हैं। केजरीवाल ने बताया,

“2023 में ब्लैकस्टोन के नेक्सस सेलेक्ट ट्रस्ट आरईआईटी की लिस्टिंग, जिसके पास 19 मॉल्स का पोर्टफोलियो, 1,000 से अधिक ब्रांड्स और 1,600 करोड़ रुपये की वार्षिक एनओआई है, ने भारत में रिटेल-आधारित आरईआईटी को नई दिशा दी। इसने इस सेक्टर को पारदर्शी, स्केलेबल और पेशेवर रूप से प्रबंधित एसेट क्लास के रूप में स्थापित किया। 2030 तक कम से कम दो और रिटेल आरईआईटी भारतीय बाजार में आने की उम्मीद है।”

ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव के बावजूद भारतीय मॉल्स को इससे नुकसान नहीं बल्कि फायदा हुआ है। भारत में ऑनलाइन रिटेल की पैठ लगभग 8% है, जो अमेरिका और चीन की तुलना में काफी कम है। कई ब्रांड अब ‘फिजिटल’ मॉडल अपना रहे हैं, जहां ऑफलाइन स्टोर्स अनुभव और भरोसा बनाते हैं, जबकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्केल प्रदान करते हैं।

भारत के ग्रेड-ए मॉल्स आमतौर पर 14–18% तक का आंतरिक रिटर्न (आईआरआर) देते हैं, जो कई पश्चिमी बाजारों की तुलना में लगभग दोगुना है। किराया वृद्धि, उपभोग-आधारित रेवेन्यू शेयरिंग और कम रिक्तता इसे दीर्घकालिक निवेश के लिए आकर्षक बनाते हैं।

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