लिंगभेद के खिलाफ एक बेटी का वर्षों का संघर्ष

सिर्फ ब्याहता होने के कारण हक से वंचित किया
लिंगभेद के खिलाफ एक बेटी का वर्षों का संघर्ष
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता की एक पंक्ति है : हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा। एक लड़की ने वाजपेयीजी कि कविता कि इस पंक्ति हो अपना प्रेरणास्रोत मान लिया और लिंगभेद के खिलाफ वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ती रही। अंत में हाई कोर्ट ने कह दिया : विजयी भव। जस्टिस अमृता सिन्हा ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है।

मामले की सुनवायी के दौरान जस्टिस सिन्हा ने सवाल किया कि क्या विवाहिता होने के कारण ही उसे उसके हक सें वंचित कर दिया जाएगा। उन्होंने सवाल किया कि क्या राज्य सरकार महिला और पुरूष के बीच भेदभाव करना चाहती है। उन्होंने कहा कि संतान चाहे लड़का हो या लड़की, ब्याहता हो या अविवाहित, सभी का माता पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है। किसी को इससे वंचित नहीं किया जा सकता है। एडवोकेट आशिष कुमार चौधरी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि यह घटना बक्रेश्वर थर्मल पावर प्लांट से जुड़ी है। राज्य सरकार ने इस परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण किया था। उन्हें कुछ सुविधाएं भी दी गई थी। इनमें एक एक्सटेंडेड कैटगरी भी थी। जिनके नाम इस श्रेणी में थे उनके परिवार में से किसी को इसके तहत नौकरी दिए जाने का प्रस्ताव था। रेखा पाल ने रोजगार दफ्तर के समक्ष आवेदन किया कि उसका नाम भी रोजगार पाने के लिए इस कैटगरी में शामिल किया जाए। उसका आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि वह ब्याहता थी। इसके खिलाफ उसने हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। एक सिंगल बेंच ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया तो राज्य सरकार ने डिविजन बेंच में अपील कर दी। डिविजन बेंच ने भी रेखा पाल के पक्ष में फैसला सुना दिया। पर नौकरशाही को यह गंवारा नहीं आया। इसके बावजूद उसका नाम एक्सटेंडेड श्रेणी में शामिल नहीं किया गया तो उसने कंटेंप्ट का मामला दायर कर दिया। जस्टिस सिन्हा के कोर्ट में रोजगार दफ्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उपस्थित होकर बताया कि रेखा पाल का नाम एक्सटेंडेड श्रेणी में शामिल कर दिया गया है। जस्टिस सिन्हा ने एक बार फिर याद दिलाया : लिंगभेद नहीं, बेटा हो या बेटी, ब्याहता हो या अविवाहिता : सभी का बराबर अधिकार है।


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