संघर्ष से सफलता तक की कहानी : पति की मौत के बाद सरकारी दफ्तरों में घूम-घूमकर बेचती हैं नाश्ता

लक्ष्मी भंडार जैसी योजनाओं से मिली राशि को बनाया संघर्ष का आधार हिम्मत न हारें तो हर संघर्ष सफलता की राह खोल देता है अलीपुर जिला मुख्यालय के विभिन्न दफ्तरों में घूम कर बेचती हैं नाश्ता
पूर्णिमा सेनगुप्त
पूर्णिमा सेनगुप्त
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रामबालक, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : कहते हैं, अगर इंसान ठान ले तो मुश्किल से मुश्किल राह भी आसान हो जाती है। हावड़ा जिले के आमता निवासी पूर्णिमा सेनगुप्ता की कहानी इस कहावत को चरितार्थ करती है। दस साल पहले पति की हृदयाघात से मौत के बाद वे टूटी नहीं, बल्कि नये हौसले के साथ जीवन की नयी शुरुआत की। पति के गुजर जाने के बाद पूर्णिमा के सामने दो बच्चों एक बेटा और एक बेटी की जिम्मेदारी आ गयी। पहले उन्होंने गुजर-बसर के लिए एक स्थानीय कलम कारखाने में काम शुरू किया, लेकिन कुछ समय बाद वहां मतभेद होने पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। आर्थिक संकट बढ़ा, मगर हार न मानते हुए उन्होंने राज्य सरकार की ‘लक्ष्मी भंडार’ और विधवा भत्ता जैसी योजनाओं से मिलने वाली राशि को अपने संघर्ष का आधार बनाया। पूर्णिमा ने उस पैसे से घर-घर घूमकर टिफिन और मिठाई बेचने का काम शुरू किया। शुरुआत में मुश्किलें आईं, लेकिन धीरे-धीरे उनका स्वाद और मेहनत लोगों को भाने लगी। आज वह सरकारी दफ्तरों और ट्रेजरी बिल्डिंग तक टिफिन पहुंचाने का काम करती हैं। कुछ अधिकारियों की मदद से उन्हें आठवें तल्ले पर एक अस्थायी स्टॉल लगाने की अनुमति भी मिली है।


विधवा पूर्णिमा: सरकारी सहायता से संघर्ष की मिसाल, अब दूसरों के लिए बनी प्रेरणा

पूर्णिमा बताती हैं, “सरकारी योजनाओं में लक्ष्मी भंडार और विधवा भत्ता से मिली राशि को बनाया संघर्ष का आधार ने मुझे हिम्मत दी। अब मुझे किसी बात का डर नहीं लगता।” वह रोज़ आमता से बस पकड़कर अलीपुर ट्रेजरी बिल्डिंग तक आती हैं और शाम को घर लौटती हैं। अपने परिश्रम और आत्मविश्वास से उन्होंने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि विधवा महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बन गईं। आगे पूर्णिमा कहती हैं, “जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन अगर हिम्मत नहीं हारें, तो हर संघर्ष सफलता की राह खोल देता है।”

पूर्णिमा की बेटी की शादी हो चुकी है और बेटा नौकरी की तलाश में है। स्थानीय पंचायत सदस्य भी उनकी तारीफ करते हैं। “पूर्णिमा जैसी महिलाएं समाज को नई दिशा दे रही हैं आज पूर्णिमा न केवल आत्मनिर्भर हैं, बल्कि दर्जनों विधवाओं को सरकारी योजनाओं से जोड़कर उनका मार्गदर्शन कर रही हैं।

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