

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के सरकारी अस्पतालों में हर्निया की माइक्रो सर्जरी की सुविधा अभी भी काफी सीमित है। एसएसकेएमस अस्पताल, कोलकाता मेडिकल कॉलेज को छोड़कर अधिकांश सरकारी अस्पतालों में हर्निया के मामलों में नाम मात्र ही माइक्रो सर्जरी की जाती है। हालांकि एसएसकेएम अस्पताल इस क्षेत्र में अपवाद है, जहां पिछले 20 वर्षों से नियमित रूप से माइक्रो सर्जरी की सुविधा उपलब्ध है। राज्य में माइक्रो सर्जरी के सीमित प्रचलन का मुख्य कारण इस विधा में प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी है। इसी कमी को दूर करने के उद्देश्य से एसएसकेएम अस्पताल में 23 से 26 अप्रैल तक एक विशेष वर्कशॉप का आयोजन किया गया। वर्कशॉप में देश के पांच प्रमुख सर्जनों ने भाग लिया और लाइव डेमोंस्ट्रेशन के माध्यम से माइक्रो सर्जरी की तकनीकों को साझा किया। राज्य भर से लगभग 250 सर्जन डॉक्टरों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। एसएसकेएम अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ सर्जरी के सचिव डॉ. सिराज अहमद ने बताया कि वर्कशॉप के दौरान कुल पांच माइक्रो सर्जरी का प्रदर्शन किया गया। वर्कशॉप का आयोजन कंबाइंड मेडिकल एजुकेशन कार्यक्रम के तहत हुआ, जिसमें एसएसकेएम के निदेशक प्रो. (डॉ) मनीमय बंदोपाध्याय ने मानव शरीर के विभिन्न अंगों की विस्तृत जानकारी साझा की। वरिष्ठ सर्जन डॉ. पार्थसारथी अर और डॉ. सी. पलानीवेलु ने वर्कशॉप के तहत माइक्रो सर्जरी के कार्यों को सिखाया।
माइक्रो और ओपन सर्जरी में अंतर माइक्रो सर्जरी और ओपन सर्जरी के बीच मुख्य अंतर यह है कि ओपन सर्जरी में मरीज को अत्यधिक दर्द और रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है। मरीज को सामान्य जीवन में लौटने में भी अधिक समय लगता है और लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। वहीं, माइक्रो सर्जरी में दर्द और रक्तस्राव नगण्य होता है। मरीज को सर्जरी के दिन ही छुट्टी दे दी जाती है और वह शीघ्र ही सामान्य जीवन में लौट सकता है। जहां निजी अस्पतालों में ओपन सर्जरी की अनुमानित लागत करीब 60,000 है, वहीं माइक्रो सर्जरी की लागत डेढ़ से दो लाख रुपये तक हो सकती है। हालांकि, सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती है। डॉ. सेराज अहमद ने बताया कि एसएसकेएम में ईटीईपी, स्कोला, ईटीईपी- आरएस, और गैस्ट्राइटिस जैसी बीमारियों से जुड़ी सर्जरी में भी माइक्रो सर्जरी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।