

रामबालक, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : कहते हैं कि अगर इंसान मन में कुछ ठान ले तो कोई भी मुश्किल उसे उसका लक्ष्य पाने से नहीं रोक सकती। ऐसी ही जज्बे और हौसले की मिसाल पेश कर रही हैं दिव्यांग महिला नमिता धारा (38), जो पिछले 18 वर्षों से ट्रेन में हॉकर का काम कर अपने और अपनी बेटी के जीवनयापन का सहारा बनी हुई हैं। नमिता धारा मूल रूप से हुगली जिले के जुरुल गुरबाड़ी 1 गुड़ाप थाना क्षेत्र की रहने वाली हैं और वर्तमान में पूर्व बर्दवान जिले के जौग्राम रेलवे स्टेशन के पास एक किराये के मकान में रहती हैं। एक रेलवे दुर्घटना में उनका एक हाथ कट गया, लेकिन इस शारीरिक अक्षमता ने उनके हौसले को कभी कमजोर नहीं किया। एक हाथ से ही वे ट्रेन में आंवला बेचने का काम करती हैं और आत्मनिर्भर जीवन जी रही हैं। नमिता बताती हैं कि वे हर दिन सुबह करीब 10:40 बजे बर्दवान-हावड़ा कॉर्ड लाइन की ट्रेन पकड़कर घर से निकलती हैं। हावड़ा पहुंचकर आंवला खरीदती हैं और फिर दिनभर ट्रेन में बेचती हैं। रात करीब 9 बजे वे घर लौटती हैं। इस कड़ी दिनचर्या के बावजूद वे रोजाना लगभग 300 रुपये कमा लेती हैं, जिससे घर का किराया और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर पाती हैं।
जीवन यापन में सहायक बनीं सरकारी योजनाएं
नमिता को राज्य सरकार की ‘लक्ष्मी भंडार’ और दिव्यांग भत्ता योजना के तहत हर महीने करीब 2000 रुपये मिलते हैं। उनका कहना है कि इस सहायता से उन्हें काफी राहत मिलती है और जीवन थोड़ा आसान हो गया है। वे यह भी कहती हैं कि अगर सरकारी आवास मिल जाए तो और अधिक सुविधा होगी। नमिता का मानना है कि महिलाओं को किसी भी काम से डरना नहीं चाहिए। वे कहती हैं, “दिव्यांग होना कमजोरी नहीं है। हर परिस्थिति का डटकर सामना करना चाहिए।” उनका संघर्ष और आत्मविश्वास न सिर्फ दिव्यांग महिलाओं, बल्कि समाज की हर महिला के लिए एक प्रेरणा है। नमिता आज महिला सशक्तीकरण की एक जीवंत मिसाल बन चुकी हैं, जो यह साबित करती हैं कि हौसला हो तो हालात भी रास्ता दे देते हैं।