6 महीने बाद दिलीप घोष का पाटी में कमबैक

अमित शाह की मीटिंग और लंच ने खत्म की दूरी की अटकलें, बंगाल में पुराने चेहरों की वापसी के संकेत
Dilip Ghosh
दिलीप घोष
Published on

कोलकाता : पश्चिम बंगाल की राजनीति में लंबे समय से एक सवाल उठ रहा था क्या दिलीप घोष अब भाजपा की मेनस्ट्रीम में लौटेंगे? करीब 6 महीने तक पार्टी के बड़े कार्यक्रमों और शीर्ष नेतृत्व की बैठकों से दूर रहे दिलीप घोष की बुधवार को अचानक मौजूदगी ने इस सवाल का जवाब दे दिया। अमित शाह की मीटिंग और लंच टेबल पर दिलीप घोष की एंट्री ने बंगाल भाजपा की अंदरूनी सियासत को एक नया मोड़ दे दिया है। मालूम हो कि शादी के बाद दीघा में जगन्नाथ मंदिर के उद्घाटन के मौके पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद दिलीप घोष की पार्टी के राज्य नेतृत्व से दूरी साफ दिखने लगी थी। नरेंद्र मोदी के राज्य दौरे हों या पार्टी के बड़े कार्यक्रम कहीं भी दिलीप को आमंत्रित नहीं किया गया। यहां तक कि मंगलवार की रात अमित शाह की राज्य भाजपा कोर कमेटी की अहम बैठक में भी वे नजर नहीं आए। लेकिन बुधवार को तस्वीर पूरी तरह बदल गई। अमित शाह की सांसद और विधायक की बैठक में दिलीप घोष को बुलाया गया। इतना ही नहीं, शाह के बुलावे पर दिलीप ने विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी, प्रदेश अध्यक्ष शमीक भट्टाचार्य और पूर्व अध्यक्ष सुकांत मजुमदार के साथ एक ही टेबल पर लंच किया। यही लंच बंगाल की राजनीति में चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन गया।

2026 के चुनाव में आप मुझे सक्रिय भूमिका में देखेंगे : दिलीप

सूत्रों के मुताबिक, कोर कमेटी की बैठक में अमित शाह ने 2026 के विधानसभा चुनाव को लेकर साफ संदेश दिया है कि हमें ये चुनाव जीतने हैं। संगठन को जमीनी स्तर पर और मजबूत करने पर जोर दिया गया। ऐसे में कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिलीप घोष की वापसी भाजपा के लिए एक सोचा-समझा मास्टरस्ट्रोक हो सकती है। मीटिंग के बाद दिलीप घोष ने मीडिया से कहा कि मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता, लेकिन 2026 के चुनाव में आप मुझे सक्रिय भूमिका में जरूर देखेंगे। मुझे अपने अनुभव साझा करने और राय देने के लिए बुलाया गया था। उनके इस बयान ने अटकलों को और हवा दे दी।

क्यों भाजपा को फिर दिलीप घोष की महसूस हुई जरूरत

यह कहने की जरूरत नहीं कि दिलीप घोष भाजपा के सबसे सफल प्रदेश अध्यक्षों में गिने जाते हैं। उनके कार्यकाल में 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बंगाल में 18 सीटें जीतीं। 2021 विधानसभा चुनाव में पार्टी की सीटें 3 से बढ़कर 77 तक पहुंचीं। हालांकि, बाद में नए चेहरों के बाद पार्टी ने कुछ पुराने नेताओं से दूरी बना ली, जिसमें दिलीप घोष भी शामिल थे। ऐसे में दिलीप 2024 लोकसभा चुनाव में मिदनापुर की जगह बर्दवान ईस्ट से चुनाव लड़े जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यह उनके राजनीतिक सफर का कठिन दौर रहा। हाल ही में तमलुक से भाजपा सांसद अभिजीत गंगोपाध्याय ने भी साफ कहा था कि दिलीप के बिना कैंपेन अधूरा लगता है। पार्टी के भीतर यह भावना मजबूत होती गई कि खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए दिलीप जैसे जमीनी और आक्रामक नेता की जरूरत है।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in