बो बैरक : लाल ईंटों का वह मोहल्लाृ, जहां अभी भी गूंजती है एंग्लो-इंडियन संस्कृति की धुन

सरे राह चलते-चलते विशेष
बो बैरक : लाल ईंटों का वह मोहल्लाृ, जहां अभी भी गूंजती है एंग्लो-इंडियन संस्कृति की धुन
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : मध्य कोलकाता की भीड़-भाड़, बाजारों और व्यस्त सड़कों के बीच एक ऐसा इलाका है, जो पहली नजर में ही शहर के बाकी हिस्सों से अलग पहचान बनाता है। लाल ईंटों वाली तीन मंजिला इमारतें, हरी खिड़कियां, बालकनी से झांकती रौशनी और क्रिसमस के दिनों में गूंजता कैरोल संगीत, यह है बो बैरक । बहुबाजार पुलिस स्टेशन के पीछे एक संकरी गली में बसा यह इलाका, कोलकाता की औपनिवेशिक विरासत और एंग्लो-इंडियन समुदाय की जीवंत संस्कृति को अपने भीतर समेटे हुए है। करीब छह-सात ब्लॉकों वाली आयताकार संरचना में फैले इस मोहल्ले की पहचान केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामुदायिक है। सरे राह चलते-चलते विशेष में आज चलते हैं उस मोहल्ले की ओर, जहां इतिहास अब भी रोजमर्रा की जिंदगी में सांस लेता है।

औपनिवेशिक दौर से एंग्लो-इंडियन घर बनने तक

बो बैरक का इतिहास प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) से जुड़ा है। विश्वसनीय स्रोतों के अनुसार, यह बैरक मूल रूप से युद्ध के दौरान आने वाले सहयोगी सैनिकों (मुख्य रूप से ब्रिटिश या अमेरिकी) के लिए अस्थायी आवास के रूप में बनाई गई थी। कुछ रिपोर्ट्स में इसे अमेरिकी सैनिकों के लिए गैरिसन मेस बताया गया है, लेकिन सैनिकों ने इसे रहने लायक नहीं समझा और फोर्ट विलियम में रहना पसंद किया। युद्ध समाप्त होने के बाद ये खाली अपार्टमेंट एंग्लो-इंडियन समुदाय को कम किराए पर आवंटित कर दिए गए। एंग्लो-इंडियन, जो ब्रिटिश राज में रेलवे, डाक-तार और प्रशासनिक सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, यहां बस गए। कोलकाता इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट इस संपत्ति का मालिक है और आज भी कई परिवार नाममात्र का किराया देते हैं। “बो” नाम पास की बो स्ट्रीट से जुड़ा है, जबकि “बैरक” शब्द इस क्षेत्र की इमारतों की बैरक-जैसी संरचना को दर्शाता है। इसमें करीब 132 से 140 फ्लैट हैं, जो लाल ईंटों वाली इमारतों में बंटे हैं। हरी खिड़कियां और बालकनियां इसकी विशेष पहचान हैं। वास्तुकार हॉल्सी रिकार्डो (जिन्होंने हावड़ा ब्रिज भी डिजाइन किया) से जुड़ा नाम कुछ स्रोतों में आता है, जो इसकी मिनिमलिस्ट औपनिवेशिक शैली को रेखांकित करता है। यह स्थापत्य शैली ब्रिटिश काल की शहरी आवासीय सोच को दर्शाती है, जो सामुदायिक जीवन को बढ़ावा देती थी।

एंग्लो-इंडियन विरासत और उत्सवों की संस्कृति

बो बैरक कोलकाता के एंग्लो-इंडियन समुदाय का अंतिम प्रमुख गढ़ माना जाता है। कभी यहां लगभग पूरी आबादी एंग्लो-इंडियन थी, जो अंग्रेजी भाषा, हॉकी, संगीत और पश्चिमी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध थे। हॉकी मैचों का आयोजन केंद्रीय आंगन में होता था, जहां दर्शक बालकनियों से तालियां बजाते थे। एल्विस प्रेस्ली, क्लिफ रिचर्ड या इंगेलबर्ट हम्परडिंक की संगीत की धुनें गलियों में गूंजती रहती थीं। लेकिन बो बैरक की असली पहचान है क्रिसमस उत्सव। हर साल दिसंबर में यहां की गलियां रोशनी से जगमगाती हैं। बड़ा क्रिसमस ट्री, ग्रोट्टो (प्रार्थना स्थल), कैरोल गायन, संगीतमय कार्यक्रम और स्टॉल लगते हैं। होममेड प्लम केक, रम बॉल्स, वाइन और एंग्लो-इंडियन व्यंजन जैसे रोस्ट, स्ट्यू बिकते हैं। संता क्लॉज रिक्शे पर आता है यह कोलकाता की अनोखी परंपरा है। उत्सव एक सप्ताह पहले शुरू होकर नए साल तक चलते हैं।

विविधता का संगम और सामुदायिक जीवन

आज बो बैरक में करीब 130 परिवार रहते हैं। एंग्लो-इंडियन अब अल्पसंख्यक हो गए हैं। बाकी चाइनीज और अन्य समुदाय के लोग हैं। फिर भी सामुदायिक भावना मजबूत है। बो बैरक एक जीवंत सांस्कृतिक केंद्र है, लेकिन चुनौतियां कम नहीं। पुरानी इमारतें जर्जर हो रही हैं, रखरखाव की कमी से समुदाय सिकुड़ रहा है। इसके बावजूद, इतिहास और वास्तुकला में रुचि रखने वालों के लिए यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण हेरिटेज ज़ोन के रूप में देखा जाता है। बो बैरक केवल इमारतों का समूह नहीं, बल्कि कोलकाता के बहु-सांस्कृतिक अतीत की एक जीवित कथा है, जहां औपनिवेशिक नगर नियोजन, एंग्लो-इंडियन समुदाय की स्मृतियां और आधुनिक शहर की जटिलताएं एक साथ मौजूद हैं। यही कारण है कि यह मोहल्ला आज भी कोलकाता की आत्मा के एक अनकहे, लेकिन बेहद जरूरी अध्याय का प्रतिनिधित्व करता है।

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