भटकती नीतियों का एक साल : पूरे वर्ष संकट में घिरता चला गया जूट उद्योग
रामबालक, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : बीता वर्ष भारतीय जूट उद्योग के लिए सबसे कठिन वर्षों में गिना जाएगा। साल की शुरुआत किसान संकट से हुई और अंत मिलों के बंद होने, उत्पादन कटौती, सप्लाई डिफॉल्ट और जूट बैग में अभूतपूर्व डायल्यूशन तक पहुँच गया। यह संकट किसी एक फैसले का परिणाम नहीं था, बल्कि पूरे वर्ष चली नीतिगत चूक, देरी और कमजोर समन्वय का नतीजा रहा, जिसने जूट क्षेत्र की संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर कर दिया। वर्ष की शुरुआत 2023–24 और 2024–25 की फसल की समस्याओं के साथ हुई। इस दौरान कच्चे जूट के दाम लंबे समय तक न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे रहे। सरकारी खरीद सीमित रही, जिससे किसान घाटे में जूट बेचने को मजबूर हुए। कम आमदनी के कारण बेहतर बीज, रेटिंग और फसल प्रबंधन पर खर्च घटा और कुछ इलाकों में जूट की बुआई भी कम हो गई। कागजों में उत्पादन सामान्य दिखता रहा, लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाले जूट की वास्तविक उपलब्धता लगातार घटती चली गई। इसी बीच कच्चे जूट का कोई बफर स्टॉक नहीं बनाया गया, जो आगे चलकर बड़ी चूक साबित हुआ। साल के मध्य तक कच्चे जूट की आवक घटने और कीमतों में बढ़ोतरी के संकेत मिलने लगे थे। यह वह समय था जब खपत और सप्लाई में संतुलन बनाने की जरूरत थी, लेकिन व्यवस्था पुराने अनुमानों पर ही चलती रही। समान और समयबद्ध वितरण नीति के अभाव में कुछ मिलों ने अधिक खपत की, जबकि कई मिलें कच्चे माल की कमी से जूझती रहीं। संकट का निर्णायक मोड़ सितंबर–अक्टूबर में आया, जब PCSO के दाम फ्रीज कर दिए गए, जबकि कच्चे जूट की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। CCEA द्वारा स्वीकृत टैरिफ कमीशन फॉर्मूले से अलग दामों पर मिलों को बैग सप्लाई करनी पड़ी, जिससे दो महीनों तक नुकसान में उत्पादन हुआ। वर्किंग कैपिटल खत्म हुआ और नकदी संकट गहरा गया। नवंबर में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से PCSO के दाम सुधरे, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। इसके बाद भी PCSO की मात्रा बढ़ती रही और दिसंबर में संशोधित सप्लाई प्लान के बावजूद अतिरिक्त ऑर्डर जारी कर दिए गए, जिससे बैकलॉग बढ़ गया। बांग्लादेश द्वारा कच्चे जूट के निर्यात पर प्रतिबंध ने इस पूरे संकट को और गंभीर बना दिया। अंततः सबसे बड़ा असर जूट मजदूरों पर पड़ा, शिफ्ट कम हुईं, मिलें बंद हुईं और रोजगार पर संकट गहरा गया। किसानों से शुरू हुआ यह संकट साल के अंत तक सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता में बदल गया।

