

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : कोलकाता में इलाज कराने आए दो बांग्लादेशी नागरिक एक मुस्लिम और एक हिंदू, इन दिनों गहरी चिंता और डर के साए में हैं। दोनों की आशंकाएं अलग-अलग हैं, लेकिन जड़ एक ही है : बढ़ता तनाव और भीड़ की हिंसा का भय। एक व्यक्ति कोलकाता में अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित है, जबकि दूसरा ढाका में अपने परिवार की सलामती को लेकर परेशान है।
चटगांव के 48 वर्षीय परिधान व्यवसायी मोहम्मद शोहेल अपनी पत्नी के हृदय शल्य-चिकित्सा के लिए कोलकाता के नारायण आरएन टैगोर अस्पताल आए हैं। उनके साथ उनकी 12 वर्षीय बेटी भी है। वे 2006 से भारत आते रहे हैं, लेकिन इस बार का माहौल उन्हें सबसे अधिक भयावह लगा। पहले वे न्यू मार्केट और पार्क सर्कस जैसे इलाकों में बेझिझक घूमते थे, पर अब होटल और अस्पताल के अलावा कहीं नहीं जाते।
हाल ही में शहर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद उनकी चिंता बढ़ गई है। कुछ संगठनों ने बांग्लादेश के उप उच्चायोग के सामने प्रदर्शन किया और पुलिस से झड़प हुई। शोहेल को डर है कि अगर कोई भीड़ उन्हें “बांग्लादेशी” बताकर निशाना बना ले, तो स्थिति बिगड़ सकती है—खासकर उनकी बेटी की सुरक्षा को लेकर वे बेहद चिंतित हैं। वे यह भी सोचकर परेशान हैं कि फॉलो-अप इलाज के लिए दोबारा कोलकाता आ पाएंगे या नहीं, क्योंकि सीमा बंद होने और वीजा प्रतिबंधों की अफवाहें चल रही हैं। उनके लिए बैंकॉक या सिंगापुर जैसे विकल्प बहुत महंगे हैं, कोलकाता सस्ता और सुलभ है।
दूसरी ओर, ढाका के 31 वर्षीय फार्मासिस्ट अपने रिश्तेदारों के इलाज के लिए कोलकाता आए हैं। उनके ससुर का घुटने का ऑपरेशन हुआ है और सास कैंसर का इलाज करा रही हैं। उनको सबसे अधिक चिंता ढाका में अपने परिवार की है, जहां वे पत्नी, 11 महीने के बेटे और माता-पिता के साथ रहते हैं। वे कहते हैं कि उनके इलाके में लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम साथ रहते आए हैं, लेकिन मौजूदा हालात में अविश्वास का माहौल बन गया है। वे रोज कई बार घर फोन कर हालचाल लेते हैं।
इलाज के लिए दोबारा भारत आने की अनिश्चितता भी उन्हें परेशान कर रही है। उन्होंने बताया कि मेडिकल वीजा मिलने में इस बार काफी समय लगा और पहले की तुलना में अब सीमित प्रविष्टियाँ ही दी जा रही हैं। दोनों परिवारों की साझा उम्मीद यही है कि हालात जल्द सामान्य हों, ताकि इलाज और जीवन, दोनों सुरक्षित रह सकें।