कोलकाता में आईएचए फाउंडेशन की 10 दिवसीय सेवा यात्रा

साथ मिलकर मनाया गया त्योहारों का उत्सव
कोलकाता में आईएचए फाउंडेशन की 10 दिवसीय सेवा यात्रा
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सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : महानगर में अप्रैल का महीना आते ही उत्सवों की रौनक छा जाती है। यह समय होता है जब शहर की धड़कन त्योहारों की धुन पर चलती है, दिलों को जोड़ने वाली खुशियाँ और सीमाओं को लांघती इंसानियत की भावना हर कोने में बिखर जाती है। इस वर्ष, आईएचए फाउंडेशन के चेयरमैन सतनाम सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में इस पर्वकाल को समर्पित करते हुए एक 10 दिवसीय सेवा यात्रा चलाई गई, जिसका उद्देश्य था—खुशियाँ बाँटना, सहानुभूति और देखभाल से लोगों का जीवन छूना।

10 अप्रैल से शुरू हुई इस यात्रा में आईएचए फाउंडेशन के वालंटियर्स ने कोलकाता की गलियों, चौराहों और मोहल्लों में जाकर पोइला बोइशाख (बंगाली नववर्ष), बैसाखी, ईस्टर, बोहाग बिहू, गुड़ी पड़वा, विषु, उगादी जैसे विविध त्योहारों की आत्मा को जीवंत कर दिया। इन सभी का उद्देश्य एक ही था—सेवा करना, खुशियाँ फैलाना, और इंसानियत की असली भावना को जीना।

रास​बिहारी, भवानीपुर, गरियाहाट, टॉलीगंज, श्यामबाजार, पार्क सर्कस और गिरीश पार्क जैसी व्यस्त सड़कों पर फाउंडेशन की टीम ने रिक्शा चालकों, ऑटो ड्राइवर्स, दैनिक मजदूरों और शहर को चलाने वाले अनजाने नायकों को ठंडा शरबत, ग्लूकोज पानी और पीने का पानी बाँटा। यह केवल प्यास बुझाने का प्रयास नहीं था, बल्कि समुदाय की आत्मा को एक साथ जोड़ने का संदेश भी था। साथ ही तौलिए और गमछे भी बांटे गए, जिससे गरिमा और राहत दोनों प्रदान हो सके।

सेवा यात्रा का विशेष पड़ाव था—अनाथालयों और वृद्धाश्रमों में जाना, जहाँ बुजुर्गों और बच्चों को मिठाइयाँ, कपड़े और उपहार बांटे गए। इन छोटी-छोटी परंतु असरदार कोशिशों ने एक ऐसा अपनापन और करुणा जगाई जो हर त्योहार की असली भावना को दर्शाता है।

बैसाखी जहाँ साहस, सेवा और समानता की सीख देती है, वहीं पोइला बोइशाख नवचेतना, कृतज्ञता और नए आरंभ का प्रतीक है। ईस्टर जीवन में पुनरुत्थान और आशा का संदेश देता है। बोहाग बिहू, गुड़ी पड़वा, विषु और उगादी—हर एक त्योहार अपनी अनूठी सांस्कृतिक छवि के साथ जीवन, मानवता और एकता के रंग बिखेरता है।

आईएचए फाउंडेशन के चेयरमैन एवं यूनाइटेड इंटरफेथ फाउंडेशन इंडिया के महासचिव सतनाम सिंह आहलूवालिया ने कहा,
"त्योहार हमें सिखाते हैं कि असली आनंद केवल व्यक्तिगत खुशी में नहीं, बल्कि देने की भावना, दिलों की एकता और दूसरों की सेवा में छिपा है। यह 10-दिवसीय सेवा यात्रा हमारे लिए इन मूल्यों को जीने का एक छोटा-सा प्रयास थी, जो पूरे शहर में खुशियों की लहर फैला गई।"

हर दिन की सेवा से एक नई कहानी उभरती रही—गिरीश पार्क पर एक रिक्शा चालक ने जब शरबत और तौलिया पाया तो कहा कि इससे केवल गर्मी में राहत नहीं मिली, बल्कि उसे एक नई गरिमा का अनुभव हुआ। पार्क सर्कस में एक बच्ची ने जब नए कपड़े और मिठाई पाई तो उसकी मुस्कान पूरे वातावरण को उम्मीद से भर गई। बॉ बज़ार के एक अनाथालय में जब बुज़ुर्ग महिलाओं ने उपहार खोले, तो उनकी हँसी ने सभी के दिलों को छू लिया।

अंत में, सतनाम सिंह आहलूवालिया ने कहा,
"जैसे हम एक नए साल की शुरुआत करते हैं और अपने अतीत के साहस और बलिदान को नमन करते हैं, आइए हम हर दिल में करुणा की लौ जलाएँ। त्योहार केवल उत्सव नहीं हैं, वे सेवा, उत्थान और एकता का आह्वान हैं। हर दया का कार्य ब्रह्मांड के लिए एक प्रार्थना बन जाए, और हर साझा मुस्कान एक आशा की किरण। मिलकर हम पलों को आंदोलनों में, संघर्षों को शक्ति में और आम दिनों को इंसानियत की अद्भुत गाथा में बदल सकते हैं।"

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