घर के लड्डूगोपाल का भी रखें ख्याल | Sanmarg

घर के लड्डूगोपाल का भी रखें ख्याल

जन्माष्टमी पर बालकृष्ण का स्वागत करने के लिए हर कोई आतुर है। घर-घर में कन्हैया को विविध रूपों में सजाया जाएगा, झांकी सजाएंगे और व्रत,भजन-कीर्तन आदि से उसे रिझाएंगे। घर-घर उत्सव जैसा माहौल होगा, लेकिन इन सबके बीच कभी-कभी हम भूल जाते हैं कि घर में ही मौजूद लड्डूगोपाल का हम कई बार जाने अनजाने में दिल दु:ख देते हैं। पैरेंट्स कई बार अपने मासूम बच्चों को मेहमानों के सामने अपमान कर देते हैं जो निश्छल और कोमल मन के इन बालगोपालों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। इसलिए आपको उसकी इन बातों की चर्चा दूसरों के सामने कत्तई नहीं करनी चाहिए-
तोतला है –
शुरू-शुरू में बच्चों का तुतलाकर बोलना बेहद स्वाभाविक है क्योंकि स्वरों और शब्दों पर उनकी सही पकड़ नहीं हो पाती। लेकिन जब पैरेन्ट्स अपने बच्चों की दूसरों के सामने खिल्ली उड़ाते हैं और उनकी नकल करते हुए तुतलाकर बोलते हैं, तो बालमन आहत हो जाता है। नतीजतन बातचीत करने का उसका अभ्यास कमजोर पड़ने लगता है और यह कमजोरी कई बार बड़े होने तक बनी रह जाती है।
शर्माऊ दुल्हन है –
कई बच्चे पैरेंट्स या दादा-दादी के अलावा अक्सर नए लोगों से मिलने में संकोच करते हैं। नए लोगों के सामने वे असहज महसूस करते हैं। बच्चों के लिए यह एक सहज और स्वाभाविक बात है। लेकिन कई मां-बाप दूसरों के सामने उसे ‘शर्माऊ दुल्हन/ बीनणी’ का दर्जा दे डालते हैं। जब बच्चा बार-बार अपमान और उपेक्षा महसूस करने लगता है तो पैरेन्ट्स के प्रति उसके मन में सम्मान तो घटता ही है, वह आगे चलकर भी नए लोगों के समक्ष सहज नहीं हो पाता।
पोंगा है –
बहुत से बच्चे सीरियल, फिल्म या गानों की बजाय बड़े होने पर भी कार्टून चैनल देखना ज्यादा पसंद करते हैं। बच्चों के पीछे पड़े रहने वाले पेरेंट्स को यह कत्तई अच्छा नहीं लगता। ऐसे में वे घर आए मेहमानों के सामने या उसके दूसरे साथियों के सामने तंज कसने लगते हैं, ‘हमारा डब्बू तो पोंगा है, कार्टून देखता है।’ इससे बच्चे को अनावश्यक शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है।
पेटूराम है-
बच्चे तो बच्चे हैं। जब मन किया, जो मन किया खा लेते हैं। उनकी पसंदीदा चीज फ्रिज में रखी हो, फ्रूट बास्केट में अंगूर, चेरी, केला, सेव जैसे फल रखे हों या केक-पेस्ट्री, बिस्किट, टॉफी आदि उनकी पहुंच में हों तो वे खा लेते हैं। यह एक सहज सी बात है। लेकिन कई पैरेन्ट्स अपने बच्चों की इस आदत का मजाक उड़ाते हैं। घर आए मेहमानों के सामने बच्चे की इस आदत को बढ़ा-चढ़ा कर बोलते हैं और उसे ‘पेटूराम’ का दर्जा दे बैठते हैं। इससे बच्चा बुरी तरह शरमा जाता है। उसके मान सम्मान को चोट पहुंचती है।
नंगी तस्वीर लगा देते हैं –
कई पैरेन्ट्स अति उत्साह में अपने बच्चों की बाथरुम में नहाते समय, पालने में लेटे हुए या मग-बाल्टी से खेलते हुए नंगे पोज की तस्वीरें ही दूसरों को दिखा देते हैं अथवा फेसबुक या व्हाट्सऐप पर डाल देते हैं। ध्यान रहे, ये तस्वीरें आपके हाथ से निकलते ही दूसरों की सम्पत्ति बन जाती हैं और वह इन्हें सेव करके भविष्य में दुरुपयोग कर सकता है। बच्चा जरा बड़ा होने पर अपनी ऐसी तस्वीरें देखता हैं तो उसे भी शर्मिन्दगी महसूस होती है।
बिस्तर गीला करता है –
कई बच्चे जरा बड़े होने तक भी रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। यह बहुत गंभीर बात नहीं है। शिशु रोग विशेषज्ञ आसानी से इसका इलाज कर देते हैं। लेकिन कुछ नासमझ पैरेंट्स इस बात का जिक्र उसके सहपाठियों, पड़ोसियों या घर आए मेहमानों के सामने कर देते हैं, तो बच्चा बुरी तरह शर्मिन्दा हो जाता है। वह खुद को ‘गंदा’ और ‘बीमार’ समझने लगता है।
ट्यूबलाइट है –
कुछ ओवर स्मार्ट पैरेंट्स अपने बच्चे से व्यस्कों जैसी त्वरित प्रतिक्रिया और परिपक्व विचारों की उम्मीद करते हैं। जबकि बच्चा तो अपनी समझ के अनुसार ही रिएक्ट करेगा। कई बार उसे बातें समझने में देर लग जाती है और फिर जवाब या प्रतिक्रिया के लिए सही जवाब या शब्द ढूंढ़ने में भी वक्त लगता है। ऐसे में कई पैरेंट्स बच्चे को ‘ट्यूबलाइट’ का दर्जा दे डालते हैं। ऐसा करना अपने बच्चे की मानसिक क्षमता के साथ खिलवाड़ ही है। भले ही ये सब कब करते हुए आपका उद्देश्य बच्चे का अपमान करना नहीं, फिर भी उसे यह बुरा लगता है।
शिखर चंद जैन

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