नई दिल्ली: देश के महान वैज्ञानिक डॉ. सीवी रमन की आज 135वीं जयंती है।इस मौके पर देशवासी उन्हें याद कर रहे हैं। सर चंद्रशेखर वेंकटरमण का जन्म 7 नवंबर 1887 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। सीवी रमन को वैज्ञानिक शोध और युवाओं में विज्ञान के प्रति लगाव पैदा करने के लिए याद किया जाता है। इन्हें भौतकी के नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में भी जानते है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नोबेल पुरूस्कार मिलने से पहले सीवी रमन एक सरकारी पद पर कार्यरत थे। दरअसल, 1906 में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें वित्त विभाग में जनरल एकाउंटेंट के पद पर नौकरी मिल गई। उस वक्त सरकारी नौकरी में इतना ऊंचा पद पाने वाले रमन पहले भारतीय थे। लेकिन उन्हे शायद जिंदगी में कुछ और मुकाम हासिल करना था। लिहाज़ा सरकारी नौकरी छोड़ दी। 1917 में सीवी रमन ने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र देकर कलकत्ता के एक नए साइंस कॉलेज में भौतिक विज्ञान का अध्यापक बन गए। भौतिकी में उन्हे गहरा लगाव था।। धीरे-धीरे डा. रमन ने अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाया और उन्हें सफलता भी मिली।
11 साल की उम्र में हुए थे 10वीं पास
सीवी रमन बचपन से ही तेज बुद्धि के थे। उन्होंने 11 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर ली थी, तो वही तत्कालीन एफए परीक्षा स्कॉलरशिप के साथ 13 कि उम्र में पूरी की थी, जो कि आज की इंटरमीडिएट के बराबर होती है।
ये थीं उपलब्धियां
-1922 में सीवी रमन ने ‘प्रकाश का आणविक विकिरण’ नामक मोनोग्राफ का प्रकाशन कराया। उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन की जांच के लिए प्रकाश के रंगो में आने वाले परिवर्तनों का निरिक्षण किया।
-साल 1930 में सीवी रमन को ‘नोबेल पुरस्कार’ के लिए चुना गया। इस दौरान रुसी वैज्ञानिक चर्ल्सन, यूजीन लाक, रदरफोर्ड, नील्स बोअर, चार्ल्स कैबी और विल्सन जैसे वैज्ञानिकों ने सीवी रमन के नाम को प्रस्तावित किया था।
-साल 1954 में भारत सरकार की ओर से उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया
-साल 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार सीवी रमन को प्रदान किया गया।
उपराष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव ठुकराया था
क्या आप जानते हैं कि सीवी रमन चाहते तो वो भारत के उपराष्ट्रपति भी बन सकते थे। लेकिन उन्होने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। जी हां..भारत सरकार की ओर से साल 1952 में उनके पास भारत का उपराष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव आया था। इस पद के लिए सभी राजनितिक दलों ने उनके नाम का समर्थन किया था। लेकिन डॉ. रमन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और विज्ञान की दिशा में अपना कार्य जारी रखा। 21 नवंबर 1970 को इनका निधन हो गया। लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में दिए अपने अतुलनीय योगदान के चलते वो अमर हो गए। और आज भी युवाओं को प्रेरणा दे रहे हैं।