फांसी से पहले अंग्रेजी सरकार ने क्रांतिकारी भगत सिंह से कही थी ये बात

शहीद भगत सिंह
शहीद भगत सिंह
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नई दिल्ली: आज क्रांतिकारी भगत सिंह की जयंती है। स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर कभी चर्चा हो तो भगत सिंह का नाम पहले आता है। देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने अपना बलिदान दे दिया। महज 23 साल की उम्र में उन्हें फांसी की सजा दी गई। अंग्रेजों को भगत सिंह और उनको मानने वालों से इतना डर था कि तय तारीख से एक दिन पहले ही बिना जानकारी दिए अंग्रेजों ने भगत सिंह को फांसी दे दी थी। आम नागरिकों को जब यह पता चला तो हालात तनावपूर्ण बन गए।

भगत सिंह से अंग्रेजों ने माफी मांगने को कहा

अंग्रेजों ने भगत सिंह को झुकाने का कई बार प्रयास किया लेकिन वो बलिदान हो गए। अंग्रेजी शासन के सामने कभी नहीं झुके।  23 मार्च के दिन भगत सिंह को फांसी दे दी गई थी। लेकिन 22 मार्च की रात लाहौर में तेज आंधी चल रही थी। उस समय तक भगत सिंह की फांसी तय हो चुकी थी। 23 मार्च की सुबह तूफान शांत हुआ। इस दौरान सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक मेजर पीडी चोपड़ा के कमरे में जेल अधिकारियों ने दबी जुबान में बातचीत की। इसके बाद पंजाब सरकार ने सुबह 10 बजे भगत सिंह से आखिरी मुलाकात की अनुमति दी। इस दौरान उनके वकील प्राणनाथ मेहता ने भगत सिंह से मुलाकात की थी। इस दौरान जेल अधीक्षक चोपड़ा और उनके नेतृत्व में कुछ ब्रिटिश अधिकारी भगत सिंह से मुलाकात करने आए। इस दौरान उन्होंने भगत सिंह से मांफी मांगने बात कही, जिसे भगत सिंह ने तिरस्कारपूर्वक अस्वीकार कर दिया था। भगत सिंह अपने अंतिम समय में भी अंग्रेजी सरकार के आगे नहीं झुके। जिसके बाद उन्हें फांसी दे दी गई।

पाकिस्तान के पंजाब में हुआ था जन्म

क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था। बंगा वर्तमान में पाकिस्तान पंजाब का हिस्सा है। मात्र 23 साल की आयु में भगत सिंह को फांसी की सजा दे दी गई थी। इस दौरान उनके साथ राजगुरू और सुखदेव को भी फांसी की सजा दी गई थी। बता दें कि एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या के जुर्म में तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है।

भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

क्रांतिकारी भगत सिंह जेल में भी अपने विचारों को प्रकट करने के लिए लिखते थे। उनके द्वारा कई बातें जेल में लिखी गई थी।

इतनी सी बात हवाओं को बताये रखना,
रौशनी होगी चिरागों को जलाये रखना,
लहू देकर की है जिसकी हिफाजत हमने,
ऐसे तिरंगे को हमेशा दिल में बसाये रखना

मुझे तन चाहिए, ना धन चाहिए,
बस अमन से भरा यह वतन चाहिए,
जब तक जिंदा रहूं, इस मातृ-भूमि के लिए,
और जब मरूं तो तिरंगा ही कफन चाहिए

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