Social Media बनता अदृश्य हथियार | Sanmarg

Social Media बनता अदृश्य हथियार

अस्त्र और शस्त्र में एक बड़ा अंतर होता है। साधारण शब्दों में समझें तो अस्त्र दूरी से फेंककर मारा जाता है। दूसरा शस्त्र हाथ में रखकर योद्धा से सामने खड़ा होकर पूरी शक्ति से लड़ने के लिए प्रयोग में लाने वाला हथियार है। शास्त्रानुसार इसकी अलग-अलग व्याख्या और अर्थ भी मिल जाते हैं। ठीक इसी प्रकार धनुष से चलने वाले को बाण कहते हैं।
जो सामने दिखाई दे रहा है वह उस पर चलाया जाता है परंतु बिना देखे केवल आवाज पर चले, उसे शब्दभेदी बाण कहते हैं। अब इस बाण और शब्दभेदी बाण में भी अंतर आ गया। शब्दभेदी बाण आवाज पर चलता है, अब वह आवाज पशु-पक्षी, मानव, सजीव से टकराकर या निर्जीव से टकराकर भी हो सकती है। वह किसी का भी वध कर सकता है। इन हथियारों के प्रयोग से सार्थक और निरर्थक दोनों प्रकार के प्रमाण और उदाहरण हमारे शास्त्रों, वेदों, पुराणों में मिल जाते हैं। कई बार इनके प्रयोग से जाने अनजाने कितने ही योद्धा, वीरों आदि को वीरगति प्राप्त हुई या अकाल मृत्यु के ग्रास बन गए।
सोशल मीडिया का अदृश्य चेहरा
युग बदला तो इन सभी हथियारों के बाद बंदूक, तोप, गोली, टैंक, परमाणु बम आदि से युद्ध करने की बारी आई। समय बदला तो जल, थल, वायु सभी स्थलों पर युद्ध होने लगा। फिर जैविक हथियार का प्रयोग हुआ। कोई भी बड़ी बीमारी विरोधी देश में फैला दीजिए, वह देश आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक हर स्तर पर कमजोर हो जाएगा। कोरोना महामारी इसका बड़ा उदाहरण है और विश्व इसे देख ही चुकी है। इसके बाद संचार युग की बारी आई है। वर्तमान संचार युग है, आज मनुष्य संचार के साधनों से जुड़कर वैश्विक दृष्टिकोण के साथ-साथ विश्वजन से जुड़ गया है। इन जनसंचार के माध्यमों में सोशल मीडिया एक जन आंदोलन, क्रांति का कार्य कर रहा है तो दूसरी ओर जन विद्रोह, आपसी लड़ाई, झगड़े-फसाद, हिंसा का बड़ा हथियार बनता जा रहा है। सोशल मीडिया का अदृश्य चेहरा बहुत बड़े हथियार का काम कर रहा है। इसमें कौन-कौन शामिल हैं? और यह कैसे चल रहा है? किसको पकड़ा जाए? एक लंबी लड़ाई है।
यह अदृश्य चेहरा और अदृश्य लड़ाई कितने ही नरसंहार की काली गाथा देश में ही नहीं विश्व भर में लिख चुका है। सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़, फेक वीडियो, फेक आवाजें, फेक संदेश, संवाद आदि चलते रहते हैं। व्यक्ति हैं कि इन फेक न्यूज़, वीडियो आदि को देखते हैं। इन पर विश्वास कर एक दूसरे को मरने मारने पर आतुर हो जाते हैं। इससे जन को कई बार बड़ा नुकसान होता है, लोग मारे जाते हैं। सामाजिक अस्थिरता फैलती है, लोगों को और सरकार को आर्थिक नुकसान होता है। यह फेक न्यूज़, संवाद वाले व्यक्ति अपने ही जैसे विचार वालों को इससे लिंक करते हैं। धीरे-धीरे वह जन आक्रोश बनकर बवाल बन जाता है। निर्दोषों की हत्या, सरकारी तंत्र को नुकसान और देश को पीछे धकेलना का कार्य किया जाता है।
चिंतनीय पहलू
यहां एक बात और चिंतनीय है कि जब भी किसी सोशल या अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म से व्यक्ति के साथ कोई निजी अनहोनी घटना घटती है तो उसे सारे साइबर क्राइम नंबर, सहायता, सहयोग, कानून आदि का पता होता है लेकिन किसी उपद्रव या विनाशकारी कार्य में वह उन वीडियो, संदेश, संवाद आदि को दबाए रखता है। केवल अपनी विचारधारा वाले व्यक्ति तक उसे भेजने का कार्य करता है जिससे कि एक भारी जन सैलाब इकट्ठा हो सके और उपद्रव तथा हिंसा को जन्म दिया जा सके।
हमारा कर्तव्य
हमें राष्ट्र और सरकार के बारे में सोचना चाहिए। देश और सरकार ने हमें अपने विचार इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रखने की स्वतंत्रता दी है। हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि कोई भी सामाजिक या देश विरोधी आदि वीडियो, संदेश, संवाद कहीं भी, किसी के भी पास हो या आए तो इसकी सूचना तुरंत पुलिस या साइबर क्राइम को दें जिससे प्रशासन तेजी से कार्यवाही करते हुए उस अप्रिय घटना को रोक सकें। जन को नुकसान न होने दिया जाए। हमारी सार्थक और सच्ची सोच, समाज और राष्ट्र दोनों के लिए हितकारी होनी चाहिए। हमें अपने साथ-साथ अपने समाज, देश और विश्व के बारे में भी जरूर सोचना चाहिए। सोशल मीडिया ने जन को विकास और गति दी है। इसे बाधा मत बनाओ, इसे कलंकित मत करो। देश के विकास में सहयोगी बनो, इसी में जन के कल्याण का भाव है। – डॉ. नीरजभारद्वाज (युवराज )

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