

केडी पार्थ
प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी की जयंती के अवसर पर गांधी संग्रहालय पटना में 15 जुलाई 2025 को एक सेमिनार का आयोजन किया गया। "प्रभाष जोशी का पत्रकारीय योगदान और बिहार से उनका जुड़ाव" विषय पर बोलते हुए जानेमाने गांधीवादी डॉ.रजी अहमद ने गांधी संग्रहालय से प्रभाष जोशी के साथ संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि प्रभाष जोशी ने सदा गांधी संग्रहालय को बिहार में अपना घर समझा। मैंने दिल्ली जाने पर हर बार उनके घर में खाना खाता था। मुझे इस बात का सब दिन अफसोस रहेगा कि प्रभाष जी अपने जीवन की आखिरी यात्रा में आयोजकों के दवाब की वजह से पटना संग्रहालय की बजाय होटल मौर्या में रुके थे। आज बाजारवाद के दौर में हमारी मजबूरी है कि पत्रकारिता और आने वाली नस्ल को बचाने के लिए प्रभाष जोशी को याद किया जाए। प्रभाष जी से मेरी पहली मुलाकात तब हुई थी ,जब जेपी और विनोबा ने प्रभाष जी की पुस्तक "चंबल के बागियों की बंदूकें गांधी की चरणों में " का लोकार्पण किया था। प्रभाष जी ने गांधी और जयप्रकाश के प्रभाव से कतार के अंतिम आदमी को जनसत्ता का सपना बनाया।
नक्सलबाड़ी हिंसा के बाद बिहार आए थे प्रभाष जोशी
सभा की अध्यक्षता करते हुए पूर्व सांसद एवं वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि मेरा प्रभाष जी से 1974 से जो रिश्ता जुड़ा वह ताउम्र कायम रहा। जब वे एकबारी के सोना टोला में हुई नक्सलबाड़ी हिंसा के बाद बिहार आए थे। प्रभाष जोशी, अजीत भट्टाचार्य और सुमन दुबे को साथ लेकर मैं सोना टोला गया था। जब लालू प्रसाद जी जेल गए तो प्रभाष जी लालू जी से मिलने जेल पहुंचे तो मैं साथ में था।यह दुष्प्रचार बेबुनियाद है कि प्रभाष जोशी राज्य सभा सांसद बनना चाहते थे।प्रभाष जोशी का प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लेकर तमाम शीर्ष राजनेताओं से निकट संबंध था और मैं इस बात को दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर प्रभाष जी ऐसा चाहते तो उनके लिए यह सब बहुत आसान था।जनसत्ता की योजना प्रभाष जी ने जेपी और गोयनका के साथ मिलकर बनाई थी ।जनसत्ता अखबार नहीं ,एक आंदोलन था ।जिसमें प्रभाष जोशी ने सफलता हासिल की।यह दुःख की बात है कि गोयनका के उत्तराधिकारी जनसत्ता के प्रति उदासीन हो गए।गंगा प्रसाद जी जनसत्ता और प्रभाष जी के करीबी रहे।गंगा की जिस जमात से जुड़े रहे,उसी जमात से मैं भी जुड़ा रहा इसलिए गंगा प्रसाद का प्रभाष जी की जयंती के अवसर पर सम्मान में हमारी जमात का सम्मान शामिल है। इस अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा कि जिन पत्रकारों को मैंने बड़े पत्रकारों के रूप में देखा, उनमें मैंने प्रभाष जोशी को शिखर पत्रकार के रूप में स्वीकार किया है। मैं उनसे लगातार प्रेरित होता रहा और उनके प्रति नतमस्तक रहा। प्रभाष जी ने पत्रकारिता की नई भाषा को विकसित किया और पत्रकारों की एक पीढ़ी को अपने हाथों से गढ़ा।प्रभाष जोशी ने नैतिकता को जिस तरह पत्रकारिता की आत्मा बनाया ,आज प्रभाष जोशी को मैं भारतीय पत्रकारिता के आत्मा की तरह महसूस करता हूँ।
आज के संपादक प्रभाष की तरह का साहस क्यों नहीं जुटा पाते
कवि -लेखिका मीरा मिश्रा ने प्रभाष जोशी और जनसत्ता को एक दूसरे का पूरक बताते हुए कहा कि इमरजेंसी के दरम्यान प्रभाष जी की भूमिका की चर्चा सुनती थी। प्रभाष जी के नेतृत्व में जनसत्ता को मैंने जनता की सत्ता के रूप में महसूस किया। सभी दूसरे चमकदार अखबार से कमजोर कागज में कमजोर लोगों की बात कहने वाला जनसत्ता मेरा सबसे प्रिय अखबार हो गया था। अपने सबसे प्रिय अखबार के संस्थापक संपादक से पहली मुलाकात मेरे लिए अविस्मरणीय है। मैंने नजदीक से महसूस किया कि उनका नाम जितना बड़ा था, उस नाम के अनुरूप वे कितने सहज और मधुर थे। उन्होंने जब गुजरात के दंगे को राज्य प्रायोजित लिखा था तो उन्होंने कितने बड़े साहस का कार्य किया था। आज के संपादक उनकी तरह का साहस क्यों नहीं जुटा सकते हैं। प्रभाष जी कहते थे कि पत्रकारिता मिशन से प्रोफेशन और अब कमीशन हो गई है।प्रभाष जी आज होते तो इस नव रूपांतरण को नया नाम देते।वे पाठकों को अपने व्यंग्य से हंसाते थे फिर हंसते हुए व्यवस्था के प्रति गुस्सा पैदा करते थे।उनके लेखन में यह अजीब सा जादू था,जो अब किसी दूसरे संपादक में ढूंढने से नहीं मिलती।
उन्हें किसी विचारधारा में बांधना मुमकिन नहीं
बिहार विधान परिषद के उपसभापति डॉ.रामवचन राय ने कहा कि प्रभाष जी बहुत बड़े हृदय वाले संपादक थे। उन्हें किसी विचारधारा में बांधना मुमकिन नहीं है। प्रभाष जोशी जी का मूल्यांकन करते हुए लोगबाग "नामवर निमित्त" को क्यों भूल रहे हैं।"नामवर निमित्त" कार्यक्रम में मैं भी वक्ता था लेकिन यह समझने वाली बात है कि प्रभाष जी ने नामवर सिंह के 75 वर्ष पूरा होने पर " नामवर निमित्त" की परिकल्पना क्यों की थी।इस आयोजन में सहयोग लिए प्रभाष जी मुझे जिस तरह से संदेश भेजा,मैं उस सम्मानजनक संवाद को कभी भूल नहीं सकता हूँ।मैं उन्हें देशज पत्रकारिता का प्रतिनिधि संपादक मानता हूँ।प्रभाष जी ने जिस तरह भाषा को संस्कार दिया,इसे मैं देशज आधुनिकता मानता हूँ।मैं गंगा प्रसाद जी को धन्यवाद देता हूँ कि आपने पटना आगमन का आमंत्रण स्वीकार किया। जगजीवन राम संसदीय अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक एवं वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने कहा कि प्रभाष जोशी ने किस तरह हम तरह के अनजान पत्रकारों को आगे बढ़ाया। मैं जब पहली बार हेमेंद्र नारायण के साथ प्रभाष जी से मिला था तो उन्होंने मुझे के.के बिड़ला फाउंडेशन फेलोशिप के लिए प्रोत्साहित किया।उन्होंने मुझे फेलोशिप दिलवाया और पुस्तक प्रकाशन के लिए देश के बड़े प्रकाशक से बात की।पुस्तक छपी,चर्चित हुई और प्रभाष जी अब दिन हमारे सुख- दुख में शामिल रहे। प्रभाष जी को याद करने का यह सिलसिला गांधी संग्रहालय का कैलेंडर कार्यक्रम बने। प्रभाष जी को याद करने से नई पीढ़ी को मानवतावादी पत्रकारिता की प्रेरणा मिलेगी।
मुख्य आकर्षण साबित हुआ गंगा प्रसाद का सम्मान कार्यक्रम
गांधी संग्रहालय के द्वारा आयोजित इस प्रभाष जयंती सम्मान का मुख्य आकर्षण कोलकाता से पधारे वरिष्ठ पत्रकार गंगा प्रसाद के सम्मान कार्यक्रम साबित हुआ। बीबीसी रेडियो के नामचीन पत्रकार मणिकांत ठाकुर,वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत, गांधी अध्ययन के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर विजय कुमार और जेपी आंदोलन की सिपाही कंचनबाला ने बिहार के वरिष्ठ पत्रकारों की ओर गंगा प्रसाद को शॉल भेंट कर सम्मानित किया ।गंगा प्रसाद जी के सम्मान के बारे में आयोजन का संचालन करते हुए पुष्पराज ने कहा कि गंगा प्रसाद जी का यह सम्मान प्रभाष जी की विरासत का सम्मान है। बिहार में प्रेस क्लब नहीं होने की वजह से अवकाश उपरांत वरिष्ठ पत्रकारों के सम्मान की परंपरा नहीं है। 75 वर्षीय गंगा प्रसाद जी का जन्म कोलकाता के जूट मजदूरों की बस्ती में हुआ था। गंगा जी जब 12 वर्ष के थे तो फौजी पिता भारत चीन युद्ध में शहीद हुए थे। गंगा प्रसाद जी के शहीद पिता के प्रति सभा में सम्मान प्रकट किया गया। चौरंगी वार्ता ,दिनमान, नई दुनियां,रविवार ,नवभारत टाइम्स के बाद गंगा जी जनसत्ता से जुड़े। गंगा जी ने किशन पटनायक की अप्रकाशित रचनाओं को संपादित कर पुस्तक रूप दिया। गंगा प्रसाद कोलकाता में रहते हुए समाजवादी आंदोलन के दस्तावेजों को संकलित करने के लिए कृत संकल्पित हैं। अपने सम्मान के दौरान गंगा प्रसाद ने कहा कि प्रभाष जोशी जी हिन्दी पत्रकारिता को ऐसा आंदोलन बनाना चाहते थे,जो समतामूलक लोकतांत्रिक और मानवीयता पर व्यवस्था पर कायम हो। उन्होंने जनसत्ता से विभिन्न इलाकों के उन युवजनों को जोड़ा जो मौजूदा व्यवस्था में तब्दीली चाहते थे और विभिन्न जन आंदोलनों में किसी न किसी रूप से सक्रिय थे। विभिन्न जन समस्याओं और उन्हें लेकर विरोध व आंदोलनों के बारे में उनकी लिखी खबरें छपने लगीं। यही वजह रही कि कुछ ही दिनों में जनसत्ता बहुत ही लोकप्रिय हो गया। हिन्दी राज्यों में उसकी धूम मच गई। जनसत्ता साधारण लोगों का अपना अखबार बन गया।
प्रभाषजी उन जगहों पर जाया करते थे, जहां जन आंदोलन होते रहते थे
जोशी जी ने जनसत्ता के लिए एक नारा गढा था "सबको खबर ले,सबकी खबर ले"। इस नारे पर जनसत्ता खरा उतरा। जनसत्ता की सजावट वगैरह का इतना प्रभाव हुआ कि दूसरे अखबार उसकी नकल करने लगे। उन दिनों जिस तरह की सामग्री पत्रिकाओं में मिलती थी, वैसी सामग्री जनसत्ता में हर दिन मिलने लगी। जोशी जी केवल दिल्ली में ही नहीं बैठे रहते। वे उन जगहों में जाया करते थे, जहां जन आंदोलन होते रहते थे। वे आंदोलनों में हिस्सा लेने वाले युवजनों से मिलते-जुलते रहते थे।यूं कहें ,वे उन्हें बल देते थे। उन्हें नेतृत्व करने लायक बनाया करते थे। उन्होंने कई आदिवासी,दलित, पिछड़े व अल्पसंख्यक युवजनों को नेतृत्व लायक बनाया है। 1994-95 के बाद अखबारों के प्रबंधकों के व्यवहार व व्यवस्था में काफी बदलाव हुए जो स्वस्थ पत्रकारिता के प्रतिकूल थे।केवल मुनाफा व व्यवसायिकता का जोर बढ़ा। पेड न्यूज आ गया। सत्ता का रवैया भी पत्रकारिता पर चोट पहुंचाने वाला हो गया। ऐसी स्थिति में प्रभाषजी विरोध में आ खड़े हुए। आखिर तक वे संघर्ष करते रहे। गांधी संग्रहालय के द्वारा आयोजित इस आयोजन में वरिष्ठ पत्रकार टेलीग्राफ के अवकाश प्राप्त संपादक दीपक मिश्र,टाइम्स ऑफ इंडिया के अवकाश प्राप्त पत्रकार प्रणव कुमार चौधरी,द हिन्दू के बिहार प्रमुख अमरनाथ तिवारी,इंडियन एक्सप्रेस के बिहार प्रमुख संतोष सिंह, बीबीसी की बिहार संवाददाता सीटू तिवारी ,श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के पूर्व महासचिव अमरमोहन प्रसाद , शिवेंद्र नारायण सिंह, जनसत्ता के पूर्वोत्तर संवाददाता अमरनाथ, नीलांशु रंजन, साहित्यकार शिवदयाल, जेपी आंदोलन की सिपाही कंचनबाला, सत्यनारायण मदन, समाजवादी नेता उमेश प्रसाद सिंह, एसयूसीआई के राज्य सचिव अरुण कुमार सिंह, प्रो.योगेन्द्र प्रसाद सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता साधना मिश्र, सूर्यकर जितेंद्र, पुरूषोतम, संतोष कुमार, आसिफ वसी, पुष्पराज,अनीश अंकुर सहित कई वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापन गांधी संग्रहालय पटना के संस्थापक डॉ. रजी अहमद ने की।