उदारीकरण ने दिलायी भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘हिंदू विकास दर’ के तंज से मुक्ति

भारत में उदारीकरण की शुरुआत
भारत में उदारीकरण की शुरुआत
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मनमोहन का वह क्रांतिकारी कदम ने भारतीय अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकी
नयी दिल्ली : डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री के तौर पर 1991 में अपना पहला बजट पेश करते हुए कहा था कि दुनिया में कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ चुका हो। उनका इशारा भारतीय अर्थव्यवस्था में होने वाले आगामी सुधारों की तरफ था। उस वक्त देश की अर्थव्यवस्था नाजुक दौर में थी और भारत के पास सिर्फ 5.80 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था जबकि देश पर करीब 70 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था।
यह वह समय था जब देश राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। पिछले तीन साल में देश ने तीन प्रधानमंत्री देखे थे जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की कमान सौंपकर आर्थिक सुधारों को लागू करने की पूरी छूट दी। हरी झंडी मिलते ही मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण लागू किया और भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंक दी। विदेशी कंपनियों ने भारत में निवेश करना शुरू कर दिया। 'लाइसेंस राज' खत्म होते ही निजी क्षेत्र ने भी तेजी से विकास करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा।
जब भारत की अर्थव्यवस्था को कहा गया 'हिंदू विकास दर'
नब्बे के दशक के दौर से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर को 'हिंदू विकास दर' कहकर बदनाम किया जाता था क्योंकि 1950 से 1980 के दशक तक भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर औसतन 4 फीसदी के आसपास होती थी। 'हिंदू विकास दर' का यह तंज भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने 1978 में दिया गया था।
मनमोहन
मनमोहन सिंह के उदारीकरण की वजह से डेढ़ दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर सात फीसदी से ऊपर तक चली गयी। जब वे देश के प्रधानमंत्री बने तो उनके 10 साल के कार्यकाल में जीडीपी ग्रोथ रेट आठ से नौ फीसदी तक पहुंच गया था। भारत ने 2007 में 8 से 9 फीसदी का जीडीपी ग्रोथ रेट हासिल कर लिया था और दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गया। इसे भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वर्णिम काल कहा जाता था। मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में आम लोगों के लिए भी कई सुधारात्मक काम किये। उनके कार्यकाल में ही राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू की गयी, जिसमें ग्रामीण मजदूरों को 100 दिन काम की गारंटी दी गयी। इसके अलावा खाद्य सुरक्षा कानून, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, किसानों का 60,000 करोड़ कर्जमाफी, भूमि अधिग्रहण कानून लागू किया गया। इसके अलावा बैंकों का सुदृढीकरण, गांव-गांव बैंकों का जाल, रोजगार आदि के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किये गये थे।

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