

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल सरकार को राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ दायर अपनी याचिकाओं को वापस लेने की अनुमति दे दी।
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर के पीठ ने यह आदेश तब पारित किया, जब केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने याचिका वापस लेने का अनुरोध किया और कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में हाल में दिये गये फैसले के मद्देनजर यह मुद्दा निरर्थक हो गया है। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का विरोध किया और कोर्ट से आग्रह किया कि विधेयकों को मंजूरी देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को कहा था कि वह इस बात पर गौर करेगा कि विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए समयसीमा तय करने के संबंध में तमिलनाडु की एक याचिका पर हाल में दिए उसके फैसले में केरल सरकार की याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे भी आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक पीठ ने तमिलनाडु सरकार की एक याचिका पर 8 अप्रैल को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए दूसरे दौर में राष्ट्रपति के विचार के लिए 10 विधेयकों को रोककर रखने के फैसले को अवैध और कानून के लिहाज से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया था। पीठ ने पहली बार यह निर्धारित किया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर उस तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए, जिस दिन विधेयक उन्हें भेजा गया था। केरल ने अपने मामले में इसी तरह के निर्देश देने का अनुरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में केरल के तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर 2 साल तक कोई फैसला न लेने पर नाराजगी व्यक्त की थी। आरिफ मोहम्मद खान वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 26 जुलाई को विपक्ष शासित केरल की उस याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दी गयी। केरल सरकार ने आरोप लगाया कि आरिफ मोहम्मद खान ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे थे और उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और केरल के राज्यपाल के सचिवों को नोटिस जारी किए। राज्य ने कहा था कि उसकी याचिका राज्यपाल द्वारा सात विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने से संबंधित है, जिन पर उन्हें स्वयं विचार करना था। केरल सरकार ने कहा था कि सातों विधेयकों में से किसी का भी केंद्र-राज्य संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है।