

नई दिल्ली : न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ले ली। वे अनुच्छेद 370 समाप्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखने सहित कई अहम फैसले देने वाले पीठों में शामिल रहे हैं।
23 नवंबर तक पद पर रहेंगे
न्यायमूर्ति गवई (64) को राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलायी। उन्होंने हिंदी में शपथ ली। उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है, जो 65 वर्ष की आयु होने पर मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए। न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक समय का होगा और वे 23 नवंबर तक पद पर रहेंगे। शपथ लेने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति गवई ने अपनी मां कमल ताई गवई के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
चुनावी बॉण्ड’ योजना को रद्द किया था
न्यायमूर्ति गवई उच्चतम न्यायालय में कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने महत्वपूर्ण फैसले दिये हैं। वे पांच-सदस्यीय उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था। न्यायमूर्ति गवई की मौजूदगी वाली पांच-सदस्यीय एक अन्य संविधान पीठ ने ‘राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉण्ड’ योजना को रद्द कर दिया था। वे पांच-सदस्यीय उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 4:1 के बहुमत के फैसले से 1,000 और 500 रुपये के नोट अमान्य करने के केंद्र के 2016 के फैसले को मंजूरी दी थी। न्यायमूर्ति गवई सात-सदस्यीय उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने 6:1 के बहुमत के फैसले में माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का सांविधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से उनमें अधिक पिछड़ी हैं।