

नई दिल्ली: भारत-रूस कच्चे तेल के व्यापार पर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के फेलो एलेक्सेई ज़खारोव ने कहा, “हाँ, तेल आपूर्ति में कई चुनौतियाँ हैं। हाल ही में अमेरिका द्वारा रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंध रूस के लिए काफी दर्दनाक हैं। फिर भी दोनों देश इन प्रतिबंधों से निपटने के लिए प्रयास कर रहे हैं। सप्लाई चेन को फिर से व्यवस्थित किया जा रहा है और नए वर्कअराउंड तंत्र विकसित किए जा रहे हैं।” विशेषज्ञों का मानना है कि भुगतान, बीमा और शिपिंग में वैकल्पिक व्यवस्था के जरिए यह व्यापार बना रहेगा।
मोदी-पुतिन मुलाकात का ब्रिक्स, एससीओ और जी-20 पर असर
ज़खारोव ने कहा, “यह मुलाकात बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले साल भारत ब्रिक्स की अध्यक्षता करने जा रहा है और समूह का विस्तार हो रहा है।” रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों नेताओं के बीच हुई वार्ता से ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और जी-20 में भारत-रूस समन्वय और मजबूत होगा। भारत की ब्रिक्स अध्यक्षता 2026 में होगी, जिसमें रूस पूर्ण समर्थन देगा। दोनों देश वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को एकजुट करने पर सहमत हैं।
रक्षा आयात विविधीकरण पर रूस का रुख
भारत के रक्षा आयात स्रोतों के विविधीकरण पर ज़खारोव ने स्पष्ट किया, “यह भारत की लंबे समय से चली आ रही नीति है, कोई नई बात नहीं है। रूस इसे अच्छी तरह समझता है कि भारत किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहना चाहता। इसलिए रूस संयुक्त उद्यम, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, भारत में उत्पादन और सह-विकास जैसे नए प्रस्ताव लेकर आ रहा है।” विशेषज्ञ के अनुसार, एस-400 की डिलीवरी जारी रहेगी और ब्रह्मोस जैसे सफल संयुक्त प्रोजेक्ट आगे भी बढ़ेंगे।
चुनौतियों के बीच मजबूत साझेदारी
पुतिन की यात्रा और मोदी के साथ वार्ता से साफ है कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी न केवल बरकरार है बल्कि नए क्षेत्रों में विस्तार ले रही है। तेल, रक्षा और बहुपक्षीय मंचों पर दोनों देश मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध हैं।