

नई दिल्ली : भारत 2030 तक अपने जलवायु लक्ष्य को पार करने की दिशा में अग्रसर है, जिसके तहत उसे 2005 के स्तर की तुलना में अपनी जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना है।
दिल्ली स्थित विचार मंच (थिंक-टैंक) ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर’ (सीईईडब्ल्यू) और एक गैर-सरकारी संगठन ‘एलायंस फॉर एन एनर्जी एफिशिएंट इकॉनमी (एईईई)’ द्वारा किये गये उत्सर्जन मॉडलिंग विश्लेषण के अनुसार 2030 तक भारत के ऊर्जा क्षेत्र की उत्सर्जन तीव्रता 2005 के स्तर की तुलना में 48 से 57 प्रतिशत तक कम हो सकती है हालांकि 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य (अर्थात उत्सर्जन और उसकी भरपाई के बीच संतुलन) प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता होगी।
इसमें कार्बन मूल्य निर्धारण को केंद्र में रखते हुए बिजली मूल्य निर्धारण में सुधार, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिए वित्तीय सहायता, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि और व्यवहार परिवर्तन से जुड़ी पहलें शामिल होंगी। इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘एनर्जी एंड क्लाइमेट चेंज' में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत के 2035 के एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) लक्ष्य में 2005 की तुलना में जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 55 से 66 प्रतिशत तक कम करना (अधिकांश परिदृश्यों में 56 प्रतिशत की कमी का संकेत है) और स्थापित बिजली क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी को 60 से 68 प्रतिशत तक बढ़ाना शामिल हो सकता है।