

महाराष्ट्र : महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट केस में इंतजार की घड़ी खत्म हो गई। 17 साल बाद आखिरकार कोर्ट का फैसला आ गया। एनआईए कोर्ट ने 2008 के मालेगांव बम ब्लास्ट केस में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी और समीर कुलकर्णी सभी बरी हो गए। अब सवाल है कि कोर्ट में ऐसा क्या हुआ कि सभी आरोपी बरी हो गए। कोर्ट ने जो टिप्पणी की है और जो फैसला दिया है, उससे समझ आ जाएगा।
मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद आज यानी गुरुवार को फैसला आया। एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने सबूत के अभाव में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि न तो बम मिला था और न ही आरडीएक्स और न ही कोई फिंगरप्रिंट। कोर्ट ने कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में काफी अंतर है।
कोर्ट के फैसले के मुताबिक, अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल में था। कर्नल पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे सप्लाई किया। यह भी साबित नहीं हुआ कि बम किसने लगाया। घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई।
कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ। साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी सिद्ध नहीं हो पाया। अदालत ने साफ कर दिया कि सातों आरोपी निर्दोष हैं। केवल संदेह के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है।
19 अप्रैल को सुरक्षित हुआ था फैसला
दरअसल, इस मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा गया था। इस मामले में सात लोग, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं, जिन पर मुकदमा चल रहा था। इन सभी लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे। सभी आरोपी वर्तमान में जमानत पर रिहा हैं।
क्या था पूरा मालेगांव केस
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ था। इस धमाके में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए। शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी। हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई।