
सर्जना शर्मा
अहमदाबाद में हुए विमान हादसे में यात्रियों के शव इतनी बुरी तरह से जल गए हैं कि उनकी पहचान करना मुश्किल हो रहा है। कौन सा शव किसका है किस मृतक के परिजन को कौन सा शव दिया जाए जब यह फैसला करना मुश्किल हो जाता है तो एकमात्र विकल्प होता है- डीएनए परीक्षण।
डीएनए यानी आनुवंशिकी, जो वंश परंपरा को पता लगाती है। कौन किस वंश का है, किसके माता-पिता कौन हैं या माता पिता न हों तो मृतक के परिवार से उसके भाई-बहन, चचेरे भाई, ताऊ के बच्चों के डीएनए सैंपल भी ले लिए जाते हैं। अहमदाबाद में 13 जून से परिजन अस्पताल के बाहर अपने डीएनए के सैंपल देने के लिए लाइन लगाए रहे। सबको एक ही आस थी कि लाश नहीं पहचान आ रही है तो क्या डीएनए मिल जाए ताकि वे सम्मान के साथ परिजन का अंतिम संस्कार कर सकें। 119 डीएनए मैच कर गए हैं जिनके डीएनए मैच के बाद 76 शव परिजनों को अब तक सौंपे जा चुके हैं। आम तौर पर व्यक्ति की मौत के साथ ही उसका डीएनए का क्षय होने लगता है लेकिन यदि ठंडी और सूखी जगह में शव हो तो डीएनए देर तक सुरक्षित रहता है। अहमदाबाद जैसे हादसे में, जिसमें कि यात्री आग में बुरी तरह से झुलस गए और आर्द्रता भी बनी हुई है डीएनए देर तक सुरक्षित नहीं रह पाता है। गुजरात की फॉरेंसिक प्रयोगशाला ने सबसे पहले डीएनए सैंपल एकत्र किए। ये सैंपल माइनस 20 डिग्री तापमान में रखे जाते हैं। यदि सैंपल त्वचा और मांसपेशियों से लिए जाते हैं तो 95 प्रतिशत इथेनॉल में रखे जाते हैं। यदि सैंपल दांत अथवा हड्डियों से लिए गए हैं तो ज्यादा देर तक सुरक्षित रहते हैं। सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद के पूर्व निदेशक राकेश मिश्रा के अनुसार, वैसे तो अंगुलियों के निशान डीएनए का पता लगाने का सबसे सरल तरीका है लेकिन अहमदाबाद जैसी घटनाओं में बुरी तरह जल गए शरीरों से भी डीएनए सैंपल लिया जा सकता है। शरीर के रोम रोम में हमारा डीएनए होता है। यदि सारे टिशु नष्ट हो जाएं तो हड्डियों से सैंपल लिया जाता है। बालों से लार से थूक से रक्त से भी लिया जाता है पर डीएनए मैच करने में कई दिन लगते हैं लेकिन यहां स्थिति अलग है इसलिए दिन रात फॉरेंसिक प्रयोगशाला मृतकों के सैंपल उनके परिजनों से मैच कर रही हैं। डीएनए सैंपल लेने के बाद वैज्ञानिक उसमें से डीएनए अलग करते हैं। दिल्ली पुलिस के पूर्व आईपीएस राजन भगत ने ‘सन्मार्ग’ को बताया कि अहमदाबाद की डीएनए लैब बहुत आधुनिक और उच्च तकनीक से युक्त है लेकिन फिर भी समय लग रहा है। डीएनए परीक्षण के माध्यम से पहचान के कई तरीके हैं जैसे कि एसटीआर (शॉर्ट टेंडम रिपीट), वाई क्रोमोसोम परीक्षण, एसएनपी परीक्षण (सिंगल न्यूक्लियोटाइड ली मॉरफिज्म परीक्षण और माईटोकोनड्रियल डीएनए परीक्षण। राजन भगत कहते हैं कि जब भी बड़े हादसे होते हैं और शवों की पहचान मुश्किल हो जाती है तो सरकार हर बार विचार करती है कि जैसे रक्त ग्रुप का डाटा बैंक बना होता है, ऐसे ही सबका डीएनए बैंक भी बना रहना चाहिए। केदारनाथ धाम की 2013 की त्रासदी के बाद इसके लिए संसद में विधेयक लाने की बात हुई थी लेकिन फिर भी निजता का प्रश्न उठा कि इसका दुरुपयोग किया जाएगा और लोगों की निजता का हनन होगा ये विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया। भारत की बात तो छोड़िए अमेरिका में 9/11 के बाद 3000 मृतकों के डीएनए सैंपल एकत्र करने में दस महीने का समय लगा था। ये एक लंबी प्रकिया है। राजन भगत बताते हैं कि एसटीआर परीक्षण में कोशिका के न्यूक्लियस का परीक्षण किया जाता है और ये सुरक्षित होना चाहिए। इसका क्षय यदि हो जाता है तो एसटीआर करना मुश्किल होता है। जब न्यूक्लियस यानी परमाणु डीएनए खराब हो जाता है नहीं मिल पाता है तो एमटीडीएनए परीक्षण किया जाता है। इसमें मां से बच्चों को बिना किसी परिवर्तन के मिलता है। माइटोकोन्ड्रियल डीएनए कोशिका के ऊर्जा उत्पादक अंगों में पाया जाता है। इसमें मां, नानी, मामा के सैंपल से मृतक का सैंपल मैच किया जाता है। ये पुराने से पुराने अवशेषों के डीएनए मैच करने में कारगर साबित होता है। वाई क्रोमोजोम पुरुषों में एक एक्स और एक वाई गुणसूत्र होता है जबकि महिलाओं में आमतौर पर 2 गुणसूत्र होते हैं। इसलिए वाई गुणसूत्र पिता को पिता के गुणसूत्र से मैच किया जाता है । इसमें मृतक के पुरुष रिश्तेदारों के सैंपल लिए जाते हैं। और एक तरीका है एसएनपी- जब मृतक के शरीर के सभी डीएनए नष्ट हो जाएं तो मृतक के हेयर ब्रश और टूथ ब्रश के सैंपल लिए जाते हैं।