हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं ने घर में घुसकर हमसे राष्ट्रीयता साबित करने को कहा : पूर्व सैनिक के परिजन

कहा : 400 साल से साबित कर सकते हैं अपनी नागरिकता
इरशाद शेख का एक पारिवारिक चित्र
इरशाद शेख का एक पारिवारिक चित्र
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पुणे : करगिल युद्ध में देश के लिए लड़ने वाले एक पूर्व सैनिक के परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि एक हिंदूवादी संगठन से जुड़े करीब 80 लोगों का एक समूह पुणे स्थित उनके घर में जबरन घुस आया और उसने उन पर बांग्लादेशी होने का आरोप लगाते हुए उनसे भारतीय नागरिकता का प्रमाण मांगा।

पूर्व सैनिक के परिवार ने दावा किया कि यह घटना शनिवार मध्य रात्रि को शहर के चंदननगर इलाके में हुई। परिवार ने आरोप लगाया कि इस दौरान सादे कपड़ों में कुछ पुलिसकर्मी भी मौजूद थे लेकिन वे मूकदर्शक बने रहे। इरशाद शेख (48) ने कहा कि उनके बड़े भाई हकीमुद्दीन शेख भारतीय सेना में सेवाएं दे चुके हैं और उन्होंने करगिल युद्ध में भी भाग लिया था तथा वह 2000 में ‘इंजीनियर्स रेजिमेंट’ से हवलदार के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। हकीमुद्दीन अब उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहते हैं। इरशाद ने कहा, ‘मेरे बड़े भाई उत्तर प्रदेश में रहते हैं, जबकि मैं अपने दो भाइयों और उनके बच्चों के साथ पिछले कई दशक से पुणे के चंदननगर इलाके में रह रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘शनिवार आधी रात को लगभग 80 लोग अचानक हमारे घर आए और जोर-जोर दरवाजा खटखटाने लगे। जब हमने दरवाजा खोला तो उनमें से कुछ लोग अंदर घुस आए और परिवार के सदस्यों के आधार कार्ड मांगने लगे।’ उन्होंने आरोप लगाया कि जब उन्होंने दस्तावेज दिखाए, तो लोगों ने उन्हें फर्जी बताकर महिलाओं और बच्चों से आधार कार्ड दिखाने को कहा। इरशाद ने कहा कि उन्होंने समूह को समझाने की कोशिश की कि उनका परिवार पिछले 60 साल से यहां रह रहा है और उनके बड़े भाई के अलावा उनके दो चाचा भी सेना में सेवा दे चुके हैं। उन्होंने कहा, ‘लेकिन समूह के सदस्य सुनने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अपशब्द कहे और हम पर बांग्लादेशी होने का आरोप लगाया। मैंने उनसे कहा कि अगर वे जांच करना चाहते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं, लेकिन आधी रात को किसी के घर में घुसकर अपशब्द कहना और बच्चों को दस्तावेज दिखाने के लिए मजबूर करना उचित नहीं है।’ इरशाद ने दावा किया कि जब हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं के समूह ने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने शुरू किए और परिवार के सदस्यों को पुलिस थाने जाने के लिए मजबूर करने की कोशिश की तो उनके साथ आए दो लोगों ने खुद को पुलिसकर्मी बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि सादे कपड़े पहने ये दोनों पुलिसकर्मी पूरे घटनाक्रम के दौरान चुपचाप खड़े रहे और कुछ नहीं किया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब वे चंदननगर पुलिस थाने पहुंचे तो महिला पुलिस निरीक्षक ने उनके दस्तावेज ले लिए और उन्हें बाहर इंतजार करने को कहा। इरशाद ने कहा, ‘हमें दो घंटे इंतजार कराने के बाद अधिकारी ने हमें अगले दिन फिर आने को कहा और चेतावनी दी कि अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हमें बांग्लादेशी नागरिक घोषित कर दिया जाएगा।’

उन्होंने कहा कि वे अगले दिन फिर पुलिस थाने गए। परिवहन क्षेत्र में काम करने वाले इरशाद ने कहा, ‘हमें इस घटना को मुद्दा न बनाने और कोई शिकायत दर्ज न कराने के लिए कहा गया। पुलिस अब हम पर दबाव बनाने और यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि हमारे घर में कोई भी घुसा नहीं था।’ उन्होंने दावा किया कि अगर दस्तावेज में कोई गड़बड़ी होती, तो पुलिस बलपूर्वक कार्रवाई करती ‘लेकिन चूंकि हमारे सभी दस्तावेज असली हैं, इसलिए अब वे हमें चुप रहने के लिए कह रहे हैं।’ इरशाद ने कहा कि उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे अपनी भारतीय नागरिकता का ‘400 साल पुराना प्रमाण भी दे सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे चाचा 1971 के युद्ध में एक बम विस्फोट में घायल हुए थे और उन्हें उनकी वीरता के लिए सम्मानित किया गया था। मेरे एक और चाचा 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अब्दुल हमीद के साथ लड़े थे।’


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