

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को हासिल शक्ति हाई कोर्टों को प्रदान किए जाने का अनुरोध किया गया था।
अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को देश के भीतर ‘उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश’ पारित करने का अधिकार देता है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां के पीठ ने कहा, ‘हम इस तरह के अनुरोध को कैसे मंजूरी दे सकते हैं? इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है। आप संसद के पास जाइए।’ पीठ ने कहा, ‘याचिका में किया गया अनुरोध पूरी तरह से गलत है। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्ति केवल इस अदालत को हासिल है, हाई कोर्टों को नहीं। इसलिए, हम हाई कोर्टों को अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को हासिल शक्ति का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दे सकते हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) अभिनव भारत कांग्रेस की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
क्या है अनुच्छेद 142 ?
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है जो सुप्रीम कोर्ट को असाधारण शक्तियां प्रदान करता है ताकि वह न्याय सुनिश्चित कर सके, भले ही कोई स्पष्ट कानून या प्रक्रिया न हो। इसे ‘पूर्ण न्याय करने की शक्ति’ कहा जाता है।
अनुच्छेद 142(1) क्या कहता है ?
‘सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में ऐसा कोई भी आदेश, डिक्री या निर्देश दे सकता है, जो उसके विचार में किसी वाद में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो।’ अर्थात, जब कोई मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने होता है और उसे लगता है कि मौजूदा कानून पर्याप्त नहीं है, तो वह ऐसा आदेश दे सकता है जो ‘पूर्ण न्याय’ के लिए जरूरी हो।
इस अनुच्छेद के उपयोग :
राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद मामला (2019) – सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद का उपयोग करते हुए विवादित भूमि को राम मंदिर के लिए और दूसरी जगह मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए जमीन देने का आदेश दिया।
सहानुभूति के मामले- जैसे किसी दोषी की सजा कम करने या तुरंत राहत देने के लिए।
विशेष बातें :
यह अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट के पास है, हाई कोर्ट को नहीं। इसका उद्देश्य है कि कानून की सीमाओं से परे जाकर भी न्याय दिया जा सके। यह एक तरह से नैतिक और संवैधानिक संतुलन स्थापित करता है।