

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2022 के उस फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तारीख तय की, जिसमें पीएमएलए के तहत धनशोधन में शामिल लोगों की गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्क करने के ईडी के अधिकारों को बरकरार रखा गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के पीठ ने बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध मामले को 31 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया, जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह उपलब्ध नहीं हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर मामला 31 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाता है, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। सात मई को, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं से उस फैसले को चुनौती देने को लेकर मुद्दे तय करने को कहा, जिसमें अभियुक्तों की गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्क करने की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा गया था। केंद्र ने तर्क दिया था कि पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई, अगस्त 2022 में याचिकाओं पर नोटिस जारी करने वाले पीठ द्वारा उठाए गए दो विशिष्ट मुद्दों से आगे नहीं बढ़ सकता। सिब्बल ने पहले दलील दी थी कि मामले को एक बड़े पीठ को सौंपना जरूरी है।
जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के तहत धनशोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और अभियुक्तों की गिरफ्तारी की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था। उसी वर्ष अगस्त में, सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत हुआ और कहा कि दो पहलुओं पर ‘प्रथम दृष्टया’ पुनर्विचार की आवश्यकता है। दुनिया भर में वित्तीय व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए धनशोधन को एक ‘खतरा’ मानते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा और रेखांकित किया कि यह कोई ‘सामान्य अपराध’ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2002 के कानून के तहत अधिकारी ‘वास्तव में पुलिस अधिकारी नहीं थे’ और ईसीआईआर को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दर्ज प्राथमिकी के समान नहीं माना जा सकता। उसने कहा कि प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर की प्रति प्रदान करना अनिवार्य नहीं है और यदि ईडी गिरफ्तारी के समय इसके कारणों का खुलासा कर दे, तो यह पर्याप्त है। 2022 का फैसला पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाली 200 से अधिक याचिकाओं पर आया था। विपक्ष अक्सर दावा करता है कि सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करती है।