केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का 101 साल की उम्र में निधन

बेहद संघर्षशील रहा जीवन
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का 101 साल की उम्र में निधन
Published on

तिरुवनंतपुरम : भारत के सबसे सम्मानित कम्युनिस्ट नेताओं में से एक और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन का सोमवार को 101 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। माकपा के प्रदेश सचिव एम वी गोविंदन ने यहां यह जानकारी दी।

अस्पताल द्वारा जारी एक आधिकारिक बुलेटिन के अनुसार, वरिष्ठ नेता अच्युतानंदन का अपराह्न 3.20 बजे पट्टोम एसयूटी अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनका 23 जून को हृदयाघात के बाद से उपचार किया जा रहा था। माकपा के संस्थापक सदस्य अच्युतानंदन आजीवन श्रमिकों के अधिकारों, भूमि सुधारों और सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे। उन्होंने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, जिसमें से तीन कार्यकाल के दौरान वह नेता प्रतिपक्ष रहे। उनका अंतिम संस्कार बुधवार दोपहर तक अलप्पुझा वलिया चुडुकाडु स्थित श्मशान घाट में किया जाएगा। 20 अक्टूबर, 1923 को अलप्पुझा जिले के तटीय गांव पुन्नपरा में जन्मे अच्युतानंदन का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और गरीबी से भरा रहा। चार साल की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया और स्कूली पढ़ाई के दौरान ही उनके पिता का देहांत हो गया, जिसके कारण उन्हें सातवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उन्होंने कुछ समय के लिए एक कपड़ा दुकान में और बाद में नारियल के रेशे के कारखाने में मजदूर के रूप में काम किया। उनकी राजनीतिक यात्रा 1940 के दशक में प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता पी कृष्ण पिल्लई से प्रेरित होकर शुरू हुई। वर्ष 1943 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में अलप्पुझा का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1946 के पुन्नपरा-वायलार विद्रोह के दौरान वह भूमिगत हो गए और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा बुरी तरह पीटा गया। पुलिस ने उन्हें मृत मान लिया था और जब उन्हें जंगल में दफनाया जाने वाला था, तभी पता चला कि वह अब भी जीवित हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वर्ष 1946 के विद्रोह के दौरान यातनाएं सहने के बावजूद, वह फिर सक्रिय राजनीतिक में लौट आए। ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता के बाद के अशांत वर्षों के दौरान, उन्होंने साढ़े पांच साल जेल में बिताए और गिरफ्तारी से बचने के लिए साढ़े चार साल भूमिगत रहे। 1956 में वह पार्टी की प्रदेश समिति में शामिल हुए और लगातार आगे बढ़ते हुए प्रमुख राष्ट्रीय पदों पर पहुंचे। वर्ष 1964 में वह राष्ट्रीय परिषद के उन 32 सदस्यों में शामिल थे, जिन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर माकपा का गठन किया जो भारतीय वामपंथी राजनीति में एक अहम मोड़ था। उसी वर्ष वह पार्टी की केंद्रीय समिति में शामिल हुए और 1985 में पोलित ब्यूरो में शामिल किए गए। अच्युतानंदन अपनी ईमानदारी, बोलचाल की मलयालम भाषा में तीखे भाषणों, भ्रष्टाचार, भूमि हड़पने और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ अपने दृढ़ रुख के लिए जाने जाते थे। एक समय उन्हें पार्टी के आधिकारिक रुख की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के कारण पोलित ब्यूरो से हटा दिया गया था। अच्युतानंदन के लिए विचारधारा कोई ऐसी चीज नहीं थी जिस पर वह यूं ही विश्वास करते थे, बल्कि वह थी जिसे उन्होंने जिया था। जब वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सत्ता में लौटा, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से वंचित कर दिया गया। पार्टी ने आंतरिक फैसलों का हवाला देते हुए उन पर ‘गुटबाजी की मानसिकता’ रखने का आरोप लगाया और उनकी जगह पिनराई विजयन को चुना।


संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in