कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान नफरत वाली राजनीति को आगे बढ़ाने का आधार : कुरैशी

निशिकांत दुबे पर निशाना
कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान नफरत वाली राजनीति को आगे बढ़ाने का आधार : कुरैशी
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नयी दिल्ली : भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के ‘मुस्लिम आयुक्त’ वाले बयान पर निशाना साधते हुए पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने सोमवार को कहा कि वह भारत के ऐसे विचार में विश्वास करते हैं, जहां व्यक्ति की पहचान उसके योगदान से होती है।

एस वाई कुरैशी ने भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे के बयानों पर पलटवार करते हुए यह भी कहा कि ‘कुछ लोगों के लिए, धार्मिक पहचान उनकी नफरत वाली राजनीति को आगे बढ़ाने का मुख्य आधार है।’ कुरैशी ने कहा कि भारत हमेशा अपनी संवैधानिक संस्थाओं और सिद्धांतों के लिए खड़ा रहा है, खड़ा है और खड़ा रहेगा तथा लड़ता रहेगा। कुरैशी ने कहा, ‘मैंने निर्वाचन आयुक्त के संवैधानिक पद पर अपनी पूरी क्षमता से काम किया है और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में मेरा लंबा और संतोषजनक कॅरियर रहा।

मैं भारत के ऐसे विचार में विश्वास करता हूं, जहां व्यक्ति को उसकी प्रतिभा और योगदान से परिभाषित किया जाता है, न कि उसकी धार्मिक पहचान से।’ भारत के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ अपनी टिप्पणी से विवाद खड़ा करने के बाद भाजपा सांसद दुबे ने रविवार को पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) कुरैशी पर निशाना साधते हुए कहा था कि वह निर्वाचन आयुक्त नहीं बल्कि ‘मुस्लिम आयुक्त’ थे। कुरैशी ने कुछ दिन पहले ही वक्फ (संशोधन) अधिनियम की आलोचना करते हुए इसे ‘मुसलमानों की भूमि हड़पने की सरकार की भयावह और बुरी योजना’ करार दिया था।

कुरैशी जुलाई 2010 से जून 2012 तक भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे। कुरैशी ने 17 अप्रैल को एक्स पर कहा था, ‘वक्फ अधिनियम निस्संदेह मुस्लिम भूमि हड़पने की सरकार की एक भयावह और बुरी योजना है। मुझे यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर सवाल उठाएगा। शरारतपूर्ण प्रचार तंत्र द्वारा फैलाई गयी गलत सूचना ने अपना काम बखूबी किया है।’ इस पर प्रतिक्रिया देते हुए निशिकांत दुबे ने कहा, ‘आप निर्वाचन आयुक्त नहीं थे, आप मुस्लिम आयुक्त थे। झारखंड के संथाल परगना में आपके कार्यकाल में सबसे अधिक बांग्लादेशी घुसपैठियों को मतदाता बनाया गया।’ उन्होंने कहा, ‘पैगंबर मुहम्मद का इस्लाम 712 में भारत आया था। उससे पहले यह भूमि (वक्फ) हिंदुओं या उस धर्म से जुड़े आदिवासियों, जैनियों या बौद्धों की थी।’

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