

नई दिल्ली - दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे स्पष्ट रूप से दर्शा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी लगभग 27वर्षों बाद राजधानी की सत्ता में वापसी करने की ओर अग्रसर है। मतगणना के दौरान बीजेपी 45 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी, जबकि आम आदमी पार्टी महज 25 सीटों तक सिमट गई।
पिछले एक दशक से दिल्ली की राजनीति में दबदबा बनाए रखने वाली AAP को इस चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में लगातार दो कार्यकाल पूरा करने वाली पार्टी इस बार बीजेपी के सामने टिक नहीं पाई। आज हम आम आदमी पार्टी के हार के कुछ मुख्य कारणों के ऊपर ध्यान देंगे।
1.Anti-Incumbency – मोदी का 'AAP-दा' वार
AAP ने 2015 से दिल्ली की सत्ता संभाली और अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया, साथ ही बिजली-पानी पर सब्सिडी जारी रखी। हालांकि, बीजेपी का वोट शेयर हमेशा 30% से अधिक बना रहा, लेकिन सीटों के मामले में वह पिछली दो बार पिछड़ गई—2015 में उसे केवल 3 सीटें और 2020 में 7 सीटें मिलीं।
इस बार AAP को 10 साल की सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency) और बीजेपी की आक्रामक रणनीति का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ‘AAP-दा’ शब्द का इस्तेमाल किया, जो ‘आपदा’ यानी विनाश का प्रतीक है। इस शब्द के जरिए बीजेपी ने AAP के 10 साल के शासन की ‘विफलताओं’ को उजागर करने का प्रयास किया।
2. ‘शीश महल’ विवाद
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को AAP के लिए अब तक का सबसे कठिन चुनाव माना गया, खासकर पिछले दो वर्षों में पार्टी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते। दिल्ली शराब नीति घोटाले में AAP के कई वरिष्ठ नेता जांच के दायरे में आए, जिससे पार्टी की साख को गहरी चोट पहुंची।
चुनाव से पहले बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरविंद केजरीवाल के ‘शीश महल’ को लेकर लगातार हमले किए। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उनके सरकारी आवास (6 फ्लैगस्टाफ रोड) पर 33.66 करोड़ रुपये खर्च होने के आरोप लगे। महंगे वॉशरूम और भव्य इंटीरियर को लेकर बीजेपी ने केजरीवाल को घेरते हुए तीखी आलोचना की।
3. डर की राजनीति
चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल और AAP नेताओं ने आरोप लगाया कि यदि बीजेपी सत्ता में आई तो वह उनकी सरकार की सभी योजनाओं को बंद कर देगी। हालांकि, बीजेपी ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि वे सभी मौजूदा योजनाओं को और अधिक पारदर्शी तरीके से जारी रखेंगे। चुनाव के अंतिम चरण में AAP ने हरियाणा की बीजेपी सरकार पर यमुना में ज़हर घोलने और दिल्ली में नरसंहार की साजिश रचने का आरोप लगाया। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि AAP की यह डर की राजनीति उलटी पड़ गई, जिससे बीजेपी को सीधा फायदा हुआ।
4. झूठे वादे
AAP ने चुनावी वादे में कहा था कि अगर वह फिर से सत्ता में आती है तो महिलाओं को हर महीने ₹2,100 की आर्थिक सहायता देगी। हालांकि, इससे पहले 2023 में पार्टी ने ₹1,000 देने का वादा किया था, जिसे वह लागू नहीं कर पाई। इसी तरह, AAP की पंजाब सरकार ने भी महिलाओं के लिए इस तरह की योजना शुरू करने का वादा किया था, लेकिन उसे अमल में लाने में विफल रही। इसके विपरीत, बीजेपी पहले ही महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में महिलाओं के लिए नकद सहायता योजनाएँ लागू कर चुकी थी। इस कारण चुनाव के नतीजों में काफी फर्क दिखा।
5. INDIA गठबंधन
AAP और कांग्रेस भले ही INDIA bloc के सहयोगी रहे हों, लेकिन पंजाब और हरियाणा में दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे की कट्टर विरोधी हैं। दिल्ली चुनाव से कुछ महीने पहले, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विपक्ष की एक रैली में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया था। हालांकि, चुनाव से ठीक एक हफ्ते पहले (28 जनवरी), उन्होंने केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को दिल्ली शराब घोटाले का मास्टरमाइंड करार दिया।
चुनाव प्रचार के दौरान भी राहुल गांधी ने ‘शीश महल’ का जिक्र करते हुए AAP पर तीखा हमला बोला, जो पहले ही बीजेपी का प्रमुख मुद्दा बन चुका था। गठबंधन में इस तरह के विरोधाभासों ने AAP की हार को और भी निश्चित कर दिया।