नागालैंड विश्वविद्यालय के अधीन होगा सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की झीलों की स्थिरता का आकलन

शोध परियोजना पर जारी होगा शीघ्र कार्य
प्रतीकात्मक तस्वीर
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कोहिमा : नागालैंड के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने सोमवार को बताया कि नागालैंड विश्वविद्यालय के अधीन एक शोध परियोजना सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में ऊंचाई पर स्थित झीलों की ‘विस्तृत, लगभग सटीक सूची और स्थिरता आकलन’ शुरू की जा रही है।

नागालैंड विश्वविद्यालय के एक अधिकारी के अनुसार, यह शोध परियोजना तेनबावा झील की ग्लेशियल झील विस्फोट से बाढ़ (ग्लॉफ) क्षमता और सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश की दो अन्य ग्लेशियल झीलों में होलोसीन जलवायु संबंधों पर केंद्रित होगी। शोधकर्ताओं का इरादा उच्च-रिजोल्यूशन डेटा का उपयोग करके ‘संभावित रूप से खतरनाक ग्लेशियल झीलों’ की पहचान करना और दो अलग-अलग परियोजनाओं के तहत अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र और उत्तरी सिक्किम के लाचुंग बेसिन में भू-आकृति विज्ञान, पर्माफ्रॉस्ट और ढलान अस्थिरता का विश्लेषण करना है। तवांग क्षेत्र की चुनिंदा झीलों से बाथीमेट्रिक सर्वेक्षण और 2डी/3डी बाढ़ मॉडलिंग के माध्यम से झीलों के अचानक विस्फोट से होने वाले जोखिम का आकलन किया जाएगा। बाथीमेट्रिक सर्वेक्षण विशिष्ट हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण होते हैं जो पानी के नीचे के भूभाग की गहराई और आकृतियों का मानचित्रण करते हैं। यह प्रक्रिया किसी जल निकाय की पानी के नीचे की स्थलाकृति के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है।

अधिकारी ने बताया कि इस परियोजना का उद्देश्य समकालीन जलवायु परिवर्तन के तहत उच्च-ऊंचाई वाली झीलों से संबंधित पारिस्थितिक जोखिमों, ज्ञान अंतरालों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की पहचान करना, साथ ही संग्रहीत मीठे जल संसाधनों का आकलन करना भी है। उन्होंने कहा कि इस जांच/ शोध के परिणामों को नीति निर्माताओं, योजनाकारों और विकासकर्ताओं के साथ साझा किया जाएगा ताकि ‘ग्लेशियल झील विस्फोट केकारण बाढ़’ की घटना से होने वाली तबाही के प्रभाव को कम करने के लिए नदियों और नालों के किनारे समग्र विकास किया जा सके, जिससे आपदा के बाद बेतरतीब बचाव, बीमा और संरचनाओं के पुनर्निर्माण से बचा जा सके। नागालैंड विश्वविद्यालय की भूगोल विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. मानसी देबनाथ, जो मुख्य अन्वेषक हैं, के नेतृत्व में यह परियोजना केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालयों द्वारा वित्त पोषित है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली, सिक्किम विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, ईटानगर और अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (आईयूएसी), दिल्ली के सह-प्रधान अन्वेषक इसमें शामिल हैं।

ऐसे अध्ययनों की आवश्यकता : कुलपति पटनायक

ऐसे अध्ययनों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए नागालैंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जगदीश के पटनायक ने कहा, ‘नागालैंड विश्वविद्यालय सिक्किम और अरुणाचल हिमालय में उच्च-ऊंचाई वाली झीलों की विस्तृत और लगभग सटीक सूची और स्थिरता मूल्यांकन विकसित करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण शोध पहल का नेतृत्व करने में गौरवान्वित है।’ उन्होंने कहा कि यह बहु-विषयक परियोजना तेनबावा झील की ‘ग्लॉफ क्षमता’ और होलोसीन जलवायु परिवर्तनों से इसके संबंधों को समझने पर केंद्रित है।

प्रो. पटनायक ने कहा कि पूर्वी हिमालय में बढ़ती पर्यावरणीय कमजोरियों को दूर करने, प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयारी बढ़ाने और अतीत की जलवायु गतिशीलता की हमारी समझ को गहरा करने के लिए ऐसे वैज्ञानिक प्रयास महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘यह परियोजना पूर्वोत्तर क्षेत्र और उसके बाहर सामाजिक और पारिस्थितिक लचीलेपन के लिए अग्रणी अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए नागालैंड विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।’ इस परियोजना के मुख्य क्षेत्रों के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. मानसी देबनाथ ने कहा, ‘हम पूर्वी हिमालय (उत्तरी सिक्किम और अरुणाचल हिमालय) में हिमनद झीलों की एक सटीक सूची बनाने और संभावित दरार और निर्वहन की मात्रा के संदर्भ में खतरनाक झीलों का मूल्यांकन करने के लिए काम कर रहे हैं। यह कार्य उच्च स्थानिक उपग्रह चित्रों और संभावित झीलों के लिए आवश्यक क्षेत्रीय सत्यापन और माप का उपयोग करके किया जाएगा।’ इस शोध को अद्वितीय बनाने वाले कारकों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने अरुणाचल और सिक्किम की हिमनद झीलों का आकलन करने का प्रस्ताव रखा है, जिनका दरार की विशेषताओं और ‘ग्लॉफ’ के समय जलप्लावन के कारण प्रभावित होने वाले क्षेत्र, प्रभावित लंबाई और पहुंच के लिए विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, ‘चूंकि अरुणाचल की हिमनद झीलों का आकलन ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्थल पर किया जा रहा है, इसलिए झील में कोई भी दरार पहुंच की लंबाई के लिहाज से विनाशकारी हो सकती है। सिक्किम में, ऐसी परिस्थितियों में पारिस्थितिक प्रभावों का अध्ययन लाचुंग उप-बेसिन स्तर पर भी किया जा रहा है। सिक्किम हिमालय में लाचुंग उप-बेसिन में पुरावशेष-खतरा विश्लेषण, बेसिन स्तर पर अतीत और वर्तमान ‘ग्लॉफ आवृत्तियों’ की तुलना करने में सहायक है।’

इन हिमनद झीलों की भौगोलिक विशिष्टताएं, पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की प्रक्रिया पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और पश्चिमी हिमालय तथा शेष उच्च एशिया की तुलना में पूर्वी हिमालय के ग्लेशियरों में बर्फ के पिघलने और बर्फ के नुकसान की दर के संदर्भ में क्षेत्रीय पैटर्न, ध्यान केंद्रित करने वाले क्षेत्र हैं। ग्लेशियरों और हिमनद झीलों के ड्रोन मानचित्रण और बाथीमेट्री सर्वेक्षण, इन ग्लेशियरों और झीलों से निकलने वाली धाराओं और नदी के निचले इलाकों में मजबूत विकास के लिए संभावित संबंधित आपदाओं के मॉडलिंग हेतु एक लगभग सटीक डेटाबेस तैयार करने में मदद करेंगे। पुरापाषाणकालीन अध्ययनों का उद्देश्य भूवैज्ञानिक अतीत में जलवायु परिवर्तन की सीमा का अनुमान लगाना है, जिससे मानव-जनित और प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता के बीच वर्तमान बहस को समझने में मदद मिलेगी। विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि यह परियोजना नागालैंड विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में स्थापित नवनिर्मित ‘ग्लेशियर और पर्वत अनुसंधान प्रयोगशाला’ नामक प्रयोगशाला के विकास में और मदद करेगी।

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