West Bengal RamNavami Violence : एनआईए ही करेगी जांच

West Bengal RamNavami Violence : एनआईए ही करेगी जांच
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सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की याचिका खारिज की
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में इस साल रामनवमी के दौरान हिंसा की घटनाओं की जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंपने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की एक याचिका पर विचार करने से सोमवार को इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि एनआईए अधिनियम की धारा 6(5) के तहत केंद्र द्वारा मई में जारी अधिसूचना की वैधता को मामले में चुनौती नहीं दी गई है।एनआईए अधिनियम की धारा 6(5) के अनुसार अगर केंद्र सरकार को लगता है कि किसी अनुसूची के तहत कोई अपराध किया गया है जिसकी इस अधिनियम के अंतर्गत जांच की जानी आवश्यक है, तो वह स्वत: संज्ञान लेते हुए एजेंसी को इसकी जांच करने का निर्देश दे सकती है।

अनुमति याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं
पीठ ने कहा, ''इस अदालत का अधिकार यह निर्धारित करना होगा कि क्या धारा 6 (5) के तहत केंद्र सरकार द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल धारा 6 (5) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के लिए पूरी तरह से असंगत है ताकि इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता हो।'' पीठ ने कहा कि एनआईए द्वारा की जाने वाली जांच की सटीक रूपरेखा का इस स्तर पर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है या उसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा, ''इस पृष्ठभूमि में और, विशेष रूप से धारा 6 (5) के तहत जारी अधिसूचना की वैधता को चुनौती की गैरमौजूदगी में हम विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।''
पीठ ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय द्वारा 27 अप्रैल के आदेश में की गई टिप्पणियों को इस सवाल तक ही सीमित रखा जाना चाहिए कि क्या विशेष कानून के तहत एनआईए द्वारा क्षेत्राधिकार का प्रयोग उचित था।
पश्चिम बंगाल सरकार ने जांच को एनआईए को स्थानांतरित करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि किसी भी विस्फोटक का इस्तेमाल नहीं हुआ था और यह निर्देश राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी द्वारा दायर 'राजनीति से प्रेरित' जनहित याचिका पर पारित किया गया।

शुभेंदु अधिकारी की जनहित याचिका
उच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल को, रामनवमी उत्सव के दौरान और उसके बाद हावड़ा के शिबपुर और हुगली के रिसड़ा में हिंसा की घटनाओं की एनआईए से जांच कराने का आदेश दिया था। यह आदेश शुभेंदु अधिकारी की जनहित याचिका और इन दो स्थानों पर हुई हिंसा की एनआईए जांच के अनुरोध संबंधी तीन अन्य याचिकाओं पर पारित किया गया था।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हिंसा के संबंध में राज्य पुलिस ने छह प्राथमिकी दर्ज की थी। पीठ ने पश्चिम बंगाल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन की दलीलों पर गौर किया कि राज्य पुलिस ने रामनवमी उत्सव के दौरान हुई कथित घटनाओं के बाद उचित कार्रवाई की थी, इसलिए एनआईए को जांच स्थानांतरित करने का उच्च न्यायालय का निर्देश उचित नहीं था और इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा।
एनआईए की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुनवाई की पिछली तारीख पर शीर्ष अदालत ने जांच एजेंसी से यह देखने के लिए कहा था कि छह प्राथमिकी में से कितने में विस्फोटक पदार्थ अधिनियम का संदर्भ था। उन्होंने कहा कि छह प्राथमिकी में से दो में अधिनियम का संदर्भ है।
शीर्ष अदालत ने 17 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए जानना चाहा था कि क्या राज्य पुलिस द्वारा दर्ज की गई छह प्राथमिकी एक ही घटना से संबंधित हैं।
उच्च न्यायालय ने राज्य पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर सभी प्राथमिकी, जब्त सामग्री, सीसीटीवी फुटेज और दस्तावेज एनआईए को सौंप दिए जाएं।

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