एक्टिव नहीं हो रहा है विक्रम-प्रज्ञान, ISRO वैज्ञानिक ने बताई वजह

(सोर्स- Isro/XTwitter)
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नई दिल्ली: भारत का चंद्रयान-3 मिशन अपना काम कर चुका है। चांद के दक्षिणी पोल पर लैंडिंग के बाद उसने इसरो को कई जानकारियां भेजी। उसके बाद चांद पर सूर्यास्त होने के बाद वह स्लीप मोड पर चला गया। शुक्रवार (22 सितंबर) को चांद पर सूरज की रोशनी पड़ने के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान स्लीप मोड से जागेंगे। इसमें वैज्ञानिकों को अभी तक सफलता हाथ नहीं लगी है। इसे लेकर अब लोगों के मन में ये सवाल उठने लगा है कि अगर रोवर और प्रज्ञान नींद से नहीं जागे तो क्या होगा ?

रोवर और प्रज्ञान का रिसीवर है चालू
बता दें कि प्रज्ञान और रोवर को स्लीप मोड पर डालने के दौरान उनके रिसीवर चालू रखे गए थे जिससे बाद में संपर्क आसानी से स्थापित किया जा सके। इसरो के साइंटिस्ट अब भी पॉजिटिव सोच रहे हैं कि उन दोनों तक मैसेज जाएगा और वे रेस्पांड करेंगे। वहीं, अगर यह नहीं जागा तो क्या होगा इसके बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है वो आपको बताते हैं।

'पूरी तरह से चार्ज होंगे सारे उपकरण'

इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई ने कहा है कि लैंडर और रोवर दोनों को स्लीप मोड पर डाला था क्योंकि चांद पर रात में तापमान बेहद कम हो जाता है। इस दौरान वह शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस तक नीचे माइनस में चला जाता है। 20-21 सितंबर से चंद्रमा पर सूर्योदय शुरू हुआ और इसरो को उम्मीद है कि 23 सितंबर तक सौर पैनल और अन्य उपकरण पूरी तरह से चार्ज हो जाएंगे। यही वजह है कि अब लगातार लैंडर और रोवर दोनों को एक्टिव करने की कोशिश हो रही है।

दोबारा एक्टिव हुआ तो होगा बोनस साबित

बता दें कि लैंडर और रोवर का कुल वजन 1752 किलोग्राम है। 23 अगस्त को विक्रम ने चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की थी। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिकों को चांद पर मौजूद कई जानकारियों के बारे में डाटा कलेक्ट किया। चांद का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। इन्हें चांद पर स्टडी के लिए इतने ही समय के लिए भेजा गया था। अगर यह दोबारा एक्टिव होते हैं तो यह भारत के लिए बोनस साबित होगा। इसरो को अभी भी उम्मीद है कि दोनों फिर से एक्टिव होंगे और कई जानकारियां जुटाएंगे। आपको बता दें कि लैंडर के चार पेलोड हैं और रोवर के दो पेलोड हैं। उनसे काफी डेटा मिल चुका है। पूरा डेटा को सेव करके रखा जा चुका है और वैज्ञानिक उस पर काम कर रहे हैं।

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