Savitribai Phule Jayanti: देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जयंती आज, जानिए उनके बारे में

Savitribai Phule Jayanti: देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जयंती आज, जानिए उनके बारे में
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नई दिल्ली: देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की आज जयंती है। इन्हें समाज सेविका, कवयित्री और दार्शनिक के तौर पर पहचाना जाता है। महाराष्‍ट्र के सतारा जिले के छोटे से गांव में इनका जन्म हुआ था। लड़कियों की शिक्षा के लिए इन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी और खुद शिक्षित होकर लड़कियों के लिए देश का पहला महिला विद्यालय खोला। जिस समय पर उन्होंने शिक्षा के लिए आवाज उठाई, उस दौर में लड़कियों की शिक्षा पर कई तरह की पाबंदियां लगी हुई थीं। उन्‍हें लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा।

शिक्षा ग्रहण करने का प्रण

सावित्रीबाई फुले लक्ष्मी और खांडोजी नेवासे पाटिल की सबसे छोटी बेटी थीं। उनका जन्‍म एक दलित परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही पढ़ाई करना चाहती थीं। जानकारी के मुताबिक ए‍क दिन वे अंग्रेजी की किताब लेकर पढ़ने की कोशिश कर रही थीं। इस दौरान उनके पिता ने देखा और किताब फेंककर उन्हें डांटा। उन्‍होंने तभी प्रण ले लिया कि वे शिक्षा लेकर ही रहेंगी।

महज 9 साल की उम्र में हुई शादी

सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ज्योतिराव फुले से हो गई। जब उनका विवाह हुआ तब वे अशिक्षित थीं और उनके पति ज्योतिराव फुले तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। सावित्रीबाई ने जब उनसे शिक्षा की इच्‍छा जाहिर की तो ज्‍योतिराव ने उन्‍हें इसकी इजाजत दे दी। इसके बाद उन्‍होंने पढ़ना शुरू किया। लेकिन जब वो पढ़ने गईं तो लोग उन पर पत्‍थर फेंकते थे, कूड़ा और कीचड़ फेंकते थे। लेकिन उन्‍होंने हार नहीं मानी। हर चुनौती का डटकर सामना किया। सावित्रीबाई फुले ने साल 1848 में अपने पति के सहयोग से महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल खोला और उस स्‍कूल की प्रधानाचार्या बनीं। यही कारण है कि उन्‍हें देश की पहली महिला शिक्षिका का दर्जा दिया जाता है। उनके इस कार्य के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें सम्मानित किया था।

महिला अधिकारों की लड़ाई में पति ने दिया साथ

अपने पति के साथ महाराष्ट्र में उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्‍होंने अपने पति के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया, जिसमें से एक सतीप्रथा भी थी। उन्‍होंने शिक्षा के साथ-साथ नारी को उनके कई अधिकार दिलाए। नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले ने समाज में फैली छुआछुत को मिटाने के लिए भी काफी संघर्ष किया । उनका निधन 10 मार्च 1897 को प्‍लेग की बीमारी की वजह से हो गया।

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