हावड़ा का प्राचीन रामराजातल्ला राम मंदिर: रामचरितमानस से प्रेरित आध्यात्मिक धरोहर

सांतरागाछी इलाके में बने इस 300 साल पुराने मंदिर के नाम पर ही इलाके का नाम पड़ा है रामराजातल्ला संत तुलसीदास के शिष्य रामदास ने 'रामचरितमानस' की चौपाइयों के पाठ के लिए मंदिर का निर्माण करवाया
हावड़ा का प्राचीन रामराजातल्ला राम मंदिर: रामचरितमानस से प्रेरित आध्यात्मिक धरोहर
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मेघा, सन्मार्ग संवाददाता

हावड़ा : हावड़ा शहर के हृदय में स्थित रामराजातल्ला राम मंदिर भगवान राम की भक्ति का प्रमुख केंद्र है। दुर्गा और शक्ति पूजा की प्रधानता वाले क्षेत्र में राम पूजा का यह अनूठा स्थल अटूट प्रेम, गहन आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक बन चुका है। तुलसीदास कृत महाकाव्य 'रामचरितमानस' से गहराई से प्रेरित यह मंदिर हर वर्ष हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। बाजार के अंदर स्थित यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है, क्योंकि भगवान राम की पूजा करने की यह परंपरा यहाँ लगभग तीन शताब्दियों से चली आ रही है। यह हावड़ा का सबसे पुराना राम मंदिर है। इस क्षेत्र का नाम इस मंदिर के कारण ही पड़ा है। स्थानीय लोग हर साल इस मंदिर में तीन महीने तक पूजा करते हैं।

मंदिर की उत्पत्ति: एक दिव्य स्वप्न की कथा : मंदिर के निर्माण की कथा एक चमत्कारी स्वप्न से जुड़ी है। स्थानीय जमींदार अयोध्याराम चौधरी को भगवान राम के दर्शन हुए, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने राम आराधना के लिए यह स्थान समर्पित किया। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, संत तुलसीदास के शिष्य रामदास ने 'रामचरितमानस' की चौपाइयों के पाठ-मनन के लिए मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर में राम-सीता, भगवान कृष्ण, शिव और तुलसीदास की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो रामायण की शिक्षाओं को जीवंत रखती हैं।

ऐतिहासिक घटना: सरस्वती पूजा और सामंजस्य का प्रतीक : मंदिर के इतिहास में सरस्वती पूजा एक महत्वपूर्ण अध्याय है। ज्ञान देवी की पूजा के दौरान राम-सीता प्रतिमाओं पर विवाद उत्पन्न हुआ, लेकिन शांतिपूर्ण समाधान के रूप में सरस्वती की मूर्ति को ऊपरी स्तर पर स्थापित किया गया। यह घटना मंदिर की विविध आध्यात्मिक परंपराओं के मिश्रण और शांति की भावना को रेखांकित करती है।

सांस्कृतिक विरासत: ऋषि रामराज की झोपड़ी से मंदिर तक : पीढ़ियों पुरानी कथाएं मंदिर को ऋषि रामराज से जोड़ती हैं, जो अपनी चमत्कारी उपचार शक्तियों और राम नाम जप के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी साधारण झोपड़ी को शिष्यों ने भव्य मंदिर में परिवर्तित किया और नाम 'रामराजातल्ला' रखा, जो रामराज्य के आदर्शों को साकार करता है। मंदिर की वास्तुकला, अनुष्ठान जैसे रामकथा पाठ और दोहा-चौपाई गायन में 'रामचरितमानस' की प्रेरणा स्पष्ट झलकती है।

पहुंच और यात्रा मार्गदर्शन

बस से: एस्प्लेनेड से बस नंबर 52 (किराया 15 रुपये, समय 40 मिनट)।

ट्रेन से: सियालदह या हावड़ा स्टेशन से रामराजातल्ला (किराया 10 रुपये, समय 15 मिनट)।

टैक्सी से: कोलकाता से (किराया 110-140 रुपये, समय 10 मिनट)।

दर्शन नियम और समय : मंदिर सुबह 9:30 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में पारंपरिक वस्त्र अनिवार्य है। शॉर्ट्स, स्कर्ट या खुले कपड़े वर्जित हैं। जूते उतारें, मौन और सम्मान बनाए रखें। 'रामचरितमानस' की अमर शिक्षाओं से प्रेरित यह स्थल भक्ति की गहन यात्रा का आमंत्रण देता है। योजना बनाएं और इस आध्यात्मिक विरासत का साक्षात्कार करें।


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