कोलकाता : सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या 14 अक्टूबर 2023 को है। इस दिन धरती पर आए पितरों को याद कर उन्हें विदाई दी जाती है। कहते हैं पितृ पक्ष में अगर आपने पूर्वजों का तर्पण, श्राद्ध नहीं किया है तो सर्व पितृ अमवास्या पर तिलांजलि कर उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करें। इस दिन दान करने से अमोघ फल प्राप्त होता, हर बड़ी परेशानी का अंत हो जाता है। ये पितरों को मनाने का आखिरी मौका है, इस दिन श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों को सालभर तक संतुष्टी रहती है।
सर्व पितृ अमावस्या 2023 मुहूर्त
अश्विन अमावस्या तिथि शुरू – 13 अक्टूबर 2023, रात 09.50
अश्विन अमावस्या तिथि समाप्त – 14 अक्टूबर 2023, 11.24
कुतुप मूहूर्त – सुबह 11:44 – दोपहर 12:30
रौहिण मूहूर्त – दोपहर 12:30 – दोपहर 01:16
अपराह्न काल – दोपहर 01:16 – दोपहर 03:35
सर्व पितृ अमावस्या पर करें इनका श्राद्ध
सर्व पितृ अमावस्या का अर्थ है सारे पितरों का श्राद्ध करने वाली तिथि। इस दिन कुल से समस्त पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है, जिन लोगों की मृत्यु तिथि याद न हो, या फिर पितृ पक्ष में तिथि वाले दिन पूर्वज का श्राद्ध न कर पाए हो सर्व पितृ अमवास्या पर उनके निमित्त तर्पण, पिंडदान कर उन्हें विदाई दी जाती है। इस दिन भूले बिसरे पितरों के नाम का भी श्राद्ध किया जा सकता है। ये पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है।
ऐसे करें पितरों का विसर्जन
सर्व पितृ अमावस्या पवित्र नदी में स्नान के बाद तर्पण, पिंडदान करें। इस दिन 1, 3, 5 ब्राह्मण को भोजन का निमंत्रण दें।दोपहर में श्राद्ध के भोग के लिए सात्विक भोजन बनाकर पंचबलि (गाय, कुत्ते, कौवे, देव और चीटी) भोग निकालें और ब्राह्मण को विधि पूर्वक भोजन कराएं। सर्व पितृ अमावस्या के भोजन में खीर पूड़ी का होना आवश्यक है। ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर विदा करें। मान्यता है इससे पितरों का विसर्जन होता है। वह तृप्त होकर पितृलोक जाते हैं।
अमावस्या पर क्यों दी जाती है पितरों को विदाई ?
पुराण के अनुसार साल में 15 दिन के लिए यमराज पितरों को मुक्त करते हैं ताकि वह पितृ पक्ष में पृथ्वीलोक में आकर परिजनों के बीच रहते हैं और अपनी क्षुधा शांत करते हैं। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से सर्व पितृ अमावस्या तक पूर्वज पृथ्वी पर रहते हैं। ऐसे में आखिरी दिन अमावस्या पर उनके नाम तर्पण, पिंडदान कर उन्हें विदाई देनी चाहिए ताकि उनकी आत्मा को बल मिल सके और वह पितृलोक में संतुष्ट रहें।
जानें कैसे पड़ा अमावस्या का नाम
मत्स्य पुराण के 14वें अध्याय की कथा के मुताबिक पितरों की एक मानस कन्या थी। उसने बहुत कठीन तपस्या की। उसे वरदान देने के लिए कृष्णपक्ष के 15वें दिन पर सभी पितरगण आए। इसमें वह कन्या बहुत ही सुंदर अमावसु नाम के पितर को देखकर आकर्षित हो गई और उनसे विवाह करने की इच्छा करने लगी। अमावसु ने इसके लिए मना कर दिया। अमावसु के धैर्य के कारण उस दिन की तिथि पितरों के लिए बहुत ही प्रिय हुई, तभी से अमावस्या तिथि के स्वामी पितर माने गए।
पितृ अमावस्या पर करते हैं अमृत पान
साल की समस्त अमावस्या पर पितृगण वायु के रूप में सूर्यास्त तक घर के दरवाजे पर रहते हैं और अपने कुल के लोगों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। इस दिन पितृ पूजा करने से उम्र बढ़ती है. परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है।