कोलकाता : इस वर्ष 17 अप्रैल, बुधवार के दिन राम नवमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन को भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। बता दें, प्रभु श्रीराम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। मान्यता है कि राम नवमी के दिन विधि-विधान पूजा करने से भगवान राम की कृपा बनी रहती है। इस दौरान कई उपाय से लेकर मंदिरों में मांगलिक कार्यक्रम किए जाते हैं। प्रभु राम के जन्मदिन का उत्साह पूरे भारत में देखने को मिलता है। राम नवमी के पावन अवसर पर घरों में उनके लिए भोग भी तैयार किए जाते है। साथ ही भंडारों का आयोजन भी किया जाता है। यदि आप इस दिन राम जी के मंदिर जाने में असमर्थ हैं, तो घर पर भी भगवान राम की पूजा-अर्चना कर के उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। आइए इस दौरान की जाने वाली पूजा की विधि को जान लेते हैं।
घर पर ऐसे करें राम जी की पूजा
राम नवमी के दिन प्रातः काल में स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें।
बाद में राम जी की मूर्ति या तस्वीर को एक लकड़ी की चौकी पर स्थापित कर दें।
इसके बाद राम जी को पंचामृत से स्नान कराएं और फिर जल से भगवान राम का अभिषेक करें।
फिर राम जी को वस्त्र पहनाएं, चंदन से तिलक करें।
बाद में फूल, माला से उनका श्रृंगार करें।
इस दौरान राम जी को अक्षत्, फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य, तुलसी के पत्ते, गंध आदि अर्पित करें।
राम जी को प्रसाद के रूप में आप रसगुल्ला, लड्डू, हलवा, इमरती, खीर आदि का भोग लगा सकते हैं।
बाद में पूजा के दौरान राम नाम का जप करें और उनकी आरती करें।
भगवान राम पूजा मंत्र
ऊं रामचंद्राय नमः
रां रामाय नमः
ऊं नमो भगवते रामचंद्राय
भगवान राम की आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।