

नई दिल्ली: मथुरा-वृंदावन में लट्ठमार होली काफी प्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग इस होली का आनंद लेने के लिए मथुरा-वृंदावन पहुंचते हैं। कहा जाता है कि ये होली राधा-कृष्ण के समय से खेली जा रही है। आज भी इसकी परंपरा ब्रज में कायम है। बरसाना के श्रीजी मंदिर में लड्डू होली के साथ ब्रज में होली खेलने का सिलसिला 17 मार्च से शुरू हो चुका है और ये 27 मार्च तक जारी रहेगा। लड्डू होली के अगले दिन ब्रज में लट्ठमार होली खेली जाती है, इसलिए ये आज 18 मार्च को खेली जा रही है। लट्ठमार होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। आइए आपको बताते हैं कैसे खेली जाती है ये होली और इसकी परंपरा कैसे शुरू हुई।
लट्ठमार होली के लिए खासतौर से टेसू के फूलों से रंग को तैयार किया जाता है। देश विदेश से लाखों लोग इस होली को देखने के लिए आते हैं। लट्ठमार होली वाले दिन नंदगांव के लोग कमर पर फेंटा लगाकर बरसाना पहुंचते हैं। इस बीच बरसाने की महिलाएं उन पर लाठियां भांजती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। लाठी की मार से बचने के लिए वे ढाल का इस्तेमाल करते हैं। होली खेलने वाले पुरुषों को होरियारे और महिलाओं को हुरियारिनें कहा जाता है। लट्ठमार होली के अगले दिन बरसाना के लोग नंदगांव की महिलाओं के साथ होली खेलने जाते हैं।
कहा जाता है कि लट्ठमार होली की ये परंपरा राधारानी और श्रीकृष्ण के समय से चली आ रही है। नटखट कान्हा उस समय अपने सखाओं को साथ लेकर राधा और अन्य गोपियों के साथ होली खेलने और उन्हें सताने के लिए नंदगांव से बरसाना पहुंच जाया करते थे। परेशान होकर राधारानी और उनकी सखियां कन्हैया और उनके गोप-ग्वालों पर लाठियां बरसाती थीं। लाठियों के वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके सखा ढालों प्रयोग करते थे। तब से राधा और कृष्ण के भक्त आज भी उस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। हर साल बरसाने में बड़े स्तर पर लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता है।