कोलकाता : हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व होता है। करवा चौथ पति-पत्नी के आपसी प्रेम और समर्पण का महापर्व माना जाता है। करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु, सौभाग्य, समृद्धि और सुखी जीवन की कामना के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और शाम को चांद के दर्शन करते हुए अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस बार करवा चौथ का महापर्व 01 नवंबर, बुधवार को है। ऐसे में आइए जानते हैं करवा चौथ व्रत का महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और आपके शहर में चांद के निकलने का समय…
करवा चौथ 2023 तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्तूबर को रात 09 बजकर 30 मिनट से आरंभ हो जाएगी। 01 नवंबर को रात 09 बजकर 19 मिनट पर चतुर्थी तिथि समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार देशभर में सुहागिन महिलाओं का महापर्व करवा चौथ 01 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा।
करवा चौथ 2023 पूजा शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय पूजा शुभ मुहूर्त-
शाम 05:34 मिनट से 06: 40 मिनट तक
पूजा की अवधि- 1 घंटा 6 मिनट
अमृत काल- शाम 07:34 मिनट से 09: 13 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन और रात
चंद्रोदय का समय (दिल्ली) : 01 नवंबर 2023 की रात 08 बजकर 15 मिनट पर
चंद्रोदय का समय (कोलकाता) : 01 नवंबर 2023 की रात 7 बजकर 45 मिनट पर
करवा चौथ का महत्व
सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व होता है। सुहागिन महिलाएं पूरे साल इस महापर्व का बेसब्री से इंतजार करती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखते हुए करवा माता, भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत रूप से पूजा-आराधना करती हैं और कथा सुनती हैं। फिर करवा चौथ की शाम को चांद के निकलने का इंतजार करती हैं और चांद के दर्शन करते हुए अपने पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ व्रत की पौराणिक मान्यताएं भी है। जिससे अनुसार पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई। जब यम आए तो सावित्री ने अपने पति को ले जाने से रोक दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से पति को फिर से पा लिया। तब से पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत किये जाने लगा। वहीं एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में वनवास काल में अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि के पर्वत पर चले गए थे तब द्रोपदी ने अर्जुन की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण से मदद मांगी। उन्होंने द्रौपदी को वैसा ही उपवास रखने को कहा जैसा माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और कुछ ही समय के बाद अर्जुन वापस सुरक्षित लौट आए।
करवा चौथ पूजा सामग्री
1.करवा
2. पूजा की थाली
3. छलनी
4. करवा माता का फोटो
5. सींक
6.जल
7. मिठाई
8.सुहाग की सभी चीजें
9.फूल- माला
10. दीपक
11.रोली
12.सिंदूर
13.मेहंदी
14. कलावा
15. चंदन
16. हल्दी
17. अगरबत्ती
18. नारियल
19. अक्षत
20. घी
करवा चौथ पूजा विधि
करवा चौथ का त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही खास होता है। प्रेम, समर्पण और विश्वास के इस महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे की पूजा का विशेष महत्त्व है,जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है। करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और पति की लंबी आयु और परिवार के सभी सदस्यों के जीवन के सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ अखंड सौभाग्य का संकल्प लेती हैं।
करवा चौथ का व्रत और पूजा का संकल्प लेने के बाद पूजा स्थल पर भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान कार्तिकेय और गणेश की स्थापना करें। इसके बाद चौथ माता फोटो रखें और पूजा की जगह पर मिट्टी का करवा रखते हुए सभी देवी-देवताओं आवहन करते हुए पूजा शुरू करें। करवे में पानी भरकर उसमें सिक्का डालकर उसे लाल कपड़े से ढ़क दें। इसके बाद पूजा की थाली में सभी श्रृंगार की सामग्रियों को एकत्रित करके एक साथ सभी महिलाएं करवा माता की आरती और कथा सुने।
महिलाएं सोलह श्रृंगार कर शाम को भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कर्तिकेय, गणेश और चंद्रमा का विधिपूर्वक पूजन करते हुए नैवेद्य अर्पित करें। रात्रि के समय चंद्रमा का दर्शन करके चंद्रमा से जुड़े मंत्रों को पढ़ते हुए अर्घ्य दें। सुहागिन महिलाएं छलनी से पहले चांद देखती हैं फिर अपने पति का चेहरा। वह चांद को देखकर यह कामना करती हैं कि उनके पति में भी यह सभी गुण आ जाएं। मां पार्वती उन सभी महिलाओं को सदा सुहागन होने का वरदान देती हैं।