कल्याणेश्वर मंदिर: जहां रामकृष्ण परमहंस ने की थी शिव की आराधना

600 वर्ष से अधिक पुराना मंदिर घने जंगलों से निकला एक स्वप्न का फल है
कल्याणेश्वर मंदिर: जहां रामकृष्ण परमहंस ने की थी शिव की आराधना
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मेघा, सन्मार्ग संवाददाता

हावड़ा : हावड़ा जिले के बल्ली क्षेत्र में ग्रांड ट्रंक रोड के किनारे स्थित कल्याणेश्वर शिव मंदिर न केवल धार्मिक महत्व का केंद्र है, बल्कि इतिहास और आध्यात्मिकता का जीवंत प्रतीक भी है। हुगली नदी के तट पर स्थित यह मंदिर बेलूर मठ के निकट होने से रामकृष्ण मिशन से गहरा जुड़ाव रखता है। 600 वर्ष से अधिक पुराना यह मंदिर घने जंगलों से निकला एक स्वप्न का फल माना जाता है, जहां स्थानीय राजा या जमींदार को दैवीय संकेत मिला और उन्होंने भूमि दान की।

मंदिर का इतिहास: जंगल से मंदिर तक का सफर

ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, यह क्षेत्र कभी घना जंगल था। दयाराम बोस ने यहां एक छोटा मंदिर बनवाया और 4 ब्राह्मण परिवारों को सेवायत नियुक्त किया, जो आज भी मंदिर की देखभाल करते हैं। मंदिर की प्राचीनता इसे बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है। हुगली नदी के साथ ही बेलूर मठ की सन्निकटता इसे तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षक बनाती है।

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का आगमन

मंदिर के सेवायत प्रबीर राॅय चौधरी ने सन्मार्ग को बताया कि मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इसका रामकृष्ण परमहंस से जुड़ाव है। परमहंसदेव कई बार यहां आये और शिव की पूजा की। एक बार उन्होंने हृदय से कहा, शिवलिंग एक जीवित देवता है और वास्तव में गतिशील है। स्वामी ब्रह्मानंद के साथ आने पर वे आनंदमग्न हो गये। स्वामी विवेकानंद और स्वामी ब्रह्मानंद भी यहां पूजा-अर्चना के लिए आये। इसके बाद 1915 में रामक़ृष्ण मिशन के पहले प्रेसिडेंट स्वामी राखाल महाराज इस मंदिर में पहला बैसाख के दिन आये थे। आज भी रामकृष्ण मठ और मिशन के भिक्षु प्रतिदिन यहां आते हैं, जबकि हर सोमवार को इस मंदिर में बेलूर मठ की ओर से विशेष पूजा की जाती है।

उत्सव और परंपराएं: शिवरात्रि से चरक तक रहती है धूम

प्रबीर राॅय चौधरी ने कहा कि मंदिर में मुख्य उत्सव महाशिवरात्रि है, जिसे धूमधाम से मनाया जाता है। अन्य प्रमुख उत्सवों में नील षष्ठी और चरक शामिल हैं। चरक के दौरान मेला लगता है, जहां 'झप' (कूद) और 'धुनो पोरानो' जैसे पारंपरिक आकर्षण लोगों को लुभाते हैं। सुबह-शाम भोग लगाया जाता है और शाम को संध्या आरती होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु कल्याणेश्वर की पूजा के लिए आते हैं।

मंदिर परिसर: काली और अन्य देवताओं की उपस्थिति

शिव मंदिर के अलावा परिसर में सिद्धेश्वरी काली मंदिर प्रमुख है। यहां बासुदेव, नारायण और गणेश की पूजा भी होती है। काली की वर्तमान मूर्ति कस्ती पत्थर (टचस्टोन) से बनी है, जो 1865 के भयंकर तूफान में नष्ट हुए मूल मंदिर के बाद स्थापित की गई। इसे 4 कार्तिक, 1317 (बंगाली कैलेंडर) को पंचमुंडी आसन में प्रतिष्ठित किया गया, जो अब एक शताब्दी से अधिक पुरानी है। शाम को कशार घंटे की ध्वनि पूरे क्षेत्र में गूंजती है, जो नियमित पूजा का प्रतीक है। कल्याणेश्वर शिव मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि बंगाल की लोक परंपराओं और संतों की स्मृतियों को जीवंत भी रखता है। श्रद्धालु यहां आकर शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं।


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