

कोलकाता : पुरुलिया निवासी दस वर्षीय जय प्रमाणिक (परिवर्तित नाम) दो महीने पहले तक एक सक्रिय और स्वस्थ किशोर था। स्कूल के बाद दोस्तों संग खेलने के बाद एक दिन अचानक उसे दोनों पैरों में दर्द की शिकायत हुई। अगली सुबह तक वह अपने पैरों को हिला भी नहीं पा रहा था। घबराए माता-पिता उसे तुरंत कोलकाता के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचे। वहां डॉक्टरों ने उसे गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) के एक्यूट मोटर एक्सोनल न्यूरोपैथी (एएमएएन) वेरिएंट से पीड़ित पाया।
यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर तंत्रिका रोग है। जय की हालत तेजी से बिगड़ने लगी थी। एक ही दिन में पूरे शरीर में लकवा मार गया। वह बोलने, खाना निगलने और यहां तक कि खुद से सांस लेने में भी असमर्थ हो गया था। बच्चे की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे जल्द ही वेंटिलेटर पर रखा गया। डॉक्टरों ने तत्काल इम्युनोग्लोबुलिन (आईवीआईडी) थेरेपी शुरू की। हालांकि, दो सप्ताह तक इलाज के बाद भी उसकी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया। इस दौरान उसे एक्यूनेटोबैक्टर और क्लेबसीएला बैक्टीरिया से निमोनिया भी हो गया, जिससे उसकी हालत और गंभीर हो गई।
बच्चे के परिजनों ने उसके बेहतर इलाज के लिए पीयरलेस अस्पताल में भर्ती कराया जहां वरिष्ठ बाल गहन चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. सहेली दासगुप्ता की देखरेख में उसका इलाज शुरू हुआ। पहले निमोनिया का इलाज किया गया और फिर आईवीआईजी थेरेपी दी गई। इसके बाद डॉ. पूनम गुहा वाजे के अधीन बच्चे की ट्रैकियोस्टॉमी की गई। 24 घंटे की चिकित्सकीय निगरानी की बदौलत जय में धीरे-धीरे सुधार दिखने लगा। उसे वेंटिलेटर से हटाया गया और जल्दी ही उसकी ट्रैकियोस्टॉमी भी निकाल दी गई। 50 दिनों तक पीआईसीयू में रहने के बाद जय अब खतरे से बाहर है। कभी दौड़ने में अव्वल रहने वाला जय अब फिर से दौड़ने का सपना देख रहा है।