बाली विवेकानंद ब्रिज : 94 वर्षों से कोलकाता की जीवनरेखा

औपनिवेशिक दौर की इंजीनियरिंग से आधुनिक कोलकाता की जीवनरेखा तक बाली, बैरकपुर और सियालदह क्षेत्र को जोड़ता है यह ब्रिज
बाली विवेकानंद ब्रिज : 94 वर्षों से कोलकाता की जीवनरेखा
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मेघा, सन्मार्ग संवाददाता

हावड़ा : हुगली नदी पर स्थित बाली विवेकानंद ब्रिज कोलकाता महानगर के सबसे पुराने और ऐतिहासिक पुलों में से एक है। वर्ष 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान निर्मित यह पुल उस समय के आधुनिक इंजीनियरिंग कौशल और शहरी नियोजन का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता था। निर्माण के समय इसका उद्देश्य हावड़ा और तत्कालीन उत्तरी उपनगरों—विशेषकर बाली, बैरकपुर और सियालदह क्षेत्र के बीच तेज और सुगम संपर्क स्थापित करना था।

निर्माण की पृष्ठभूमि : 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में हुगली नदी पार करने के लिए मुख्यतः फेरी और सीमित रेलवे साधन उपलब्ध थे। उद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि के साथ एक ऐसे पुल की आवश्यकता महसूस की गई, जो रेल और सड़क—दोनों यातायात को एक साथ संभाल सके। इसी आवश्यकता के परिणामस्वरूप बाली ब्रिज की योजना बनी। यह पुल स्टील आर्च और ट्रस संरचना पर आधारित है, जो उस दौर में ब्रिटिश इंजीनियरिंग की पहचान थी। पुल का निर्माण ब्रिटिश इंजीनियरों की देखरेख में हुआ और इसे इस तरह डिजाइन किया गया कि यह भारी रेल यातायात के साथ-साथ वाहनों का दबाव भी सह सके।

रेल और सड़क का अनूठा संगम : बाली ब्रिज की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यह पूर्व रेलवे की लोकल ट्रेनों और सड़क यातायात दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी रहा। सियालदह–बैरकपुर रेल मार्ग के लिए यह पुल जीवनरेखा बना, जिससे उत्तर कोलकाता और उपनगरों के बीच दैनिक आवागमन बेहद सुगम हुआ।

नामकरण और विवेकानंद सेतु : स्वतंत्रता के बाद इस पुल का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा गया, ताकि भारतीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना के इस महान प्रतीक को सम्मान दिया जा सके। इसके बाद से यह पुल विवेकानंद सेतु के नाम से भी जाना जाने लगा।

सामाजिक और आर्थिक योगदान

दशकों तक यह पुल जूट मिलों और औद्योगिक क्षेत्रों के श्रमिकों की आवाजाही का प्रमुख माध्यम रहा।

व्यापारिक परिवहन और माल ढुलाई में सहायक बना।

हावड़ा और उत्तर 24 परगना के शहरी विकास की नींव बना।

यह पुल केवल यातायात का साधन नहीं रहा, बल्कि लाखों लोगों के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन गया।

समय की परीक्षा और संरक्षण :

लगभग एक सदी से खड़े इस पुल ने बाढ़, बढ़ते यातायात का दबाव और समय-समय पर संरचनात्मक क्षरण जैसी चुनौतियों का सामना किया। इसके बावजूद नियमित मरम्मत और रखरखाव के कारण यह आज भी उपयोग में है। हाल के वर्षों में नए पुलों के निर्माण के बाद भी बाली ब्रिज का ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्व कम नहीं हुआ है।

विरासत का प्रतीक

आज बाली विवेकानंद ब्रिज केवल एक पुल नहीं, बल्कि कोलकाता की औद्योगिक, सामाजिक और सांस्कृतिक यात्रा का साक्षी है। यह उन पीढ़ियों की यादों से जुड़ा है, जिन्होंने इसे पार करते हुए काम, शिक्षा और जीवन की नई दिशाएँ पाईं। वास्तव में, बाली विवेकानंद ब्रिज “स्टील और पत्थर से कहीं अधिक”—एक जीवंत विरासत है, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ता है।


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