झील की बदहाली का असर, सांतरागाछी में कम पहुंचे प्रवासी पक्षी

पेक्टोरल सैंडपाइपर प्रवासी पक्षी की तस्वीर
पेक्टोरल सैंडपाइपर प्रवासी पक्षी की तस्वीर
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जलकुंभी से भरी सांतरागाछी झील, देर से शुरू हुआ संरक्षण कार्य, पहले ही लौट गये प्रवासी पक्षी

मेघा, सन्मार्ग संवाददाता

हावड़ा: लंबे इंतजार के बाद आखिरकार प्रवासी पक्षी सांतरागाछी झील में आने लगे हैं, लेकिन इस बार उनकी संख्या पिछले सालों के मुकाबले काफी कम है। स्थानीय लोगों और पक्षी प्रेमियों का कहना है कि झील की खराब हालत और जलकुंभी (पानी की कुम्फी) से पूरी तरह ढके होने के कारण, कई विदेशी प्रवासी पक्षी यहां नहीं उतर पाए और शायद दूसरी जगहों पर चले गए। हावड़ा की सांतरागाछी झील में आमतौर पर हर साल नवंबर के पहले हफ्ते से प्रवासी पक्षी आने लगते हैं। लेकिन इस साल दिसंबर के बीच तक पहुंचने के बावजूद, झील में कुछ ही पक्षी दिखाई दे रहे हैं। आरोप है कि झील का प्राकृतिक माहौल खराब हो गया है, जिससे पक्षियों को सुरक्षित जगह नहीं मिल पाई। हर साल सर्दियों से पहले, झील से जलकुंभी हटाकर प्रवासी पक्षियों के लिए आर्टिफिशियल और तैरते हुए आईलैंड बनाए जाते हैं, ताकि वे बिना किसी परेशानी के यहां रह सकें। लेकिन इस बार समय पर काम शुरू नहीं होने के कारण पक्षी झील के ऊपर ही चक्कर लगाते रहे और कई वापस लौट गए। स्थानीय निवासी गौतम पात्रा ने बताया कि शुरुआती दिनों में पक्षी झील में उतर नहीं पा रहे थे और पास के पेड़ों पर डेरा डाल रहे थे। हालांकि, अब कुछ राहत की खबर है। 'नेचरमेट्स नेचर क्लब' नाम की एक स्वयंसेवी संस्था ने कुछ दिन पहले जलकुंभी हटाने का काम शुरू किया है। हटायी गयी जलकुंभी से पक्षियों के लिए तैरते हुए टापू बनाए जा रहे हैं। संस्थान की अधिकारी लीना चट्टोपाध्याय ने बताया कि सरकारी वर्क ऑर्डर मिलने में देरी के कारण काम देर से शुरू हुआ, लेकिन अब करीब 150-200 पक्षी दिखने लगे हैं। जनवरी से मार्च के बीच आने वाली दूसरी प्रजातियों के लिए सुरक्षित ठिकाने तैयार करने की कोशिशें जारी हैं, जिसमें राज्य बायोडायवर्सिटी बोर्ड भी सहयोग कर रहा है। स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि जलकुंभी हटाने के बाद आने वाले दिनों में प्रवासी पक्षियों की संख्या फिर से बढ़ेगी। हर साल सर्दियों में रूस, साइबेरिया और तिब्बत समेत कई देशों से हजारों पक्षी यहां आते हैं और आमतौर पर अप्रैल की शुरुआत तक झील में डेरा डालते हैं।


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