Dengue Alert Kolkata : अस्पतालों में हो रही है इस चीज की कमी

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तेजी से बढ़ रहा है डेंगू
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : बेकाबू हाे रहे डेंगू बुखार के बाद महानगर के ब्लड बैंकों में प्लेटलेट्स की मांग पिछले एक महीने में कई गुना बढ़ गई है। प्लेटलेट्स की बढ़ती मांग से डेंगू मरीजाें के परिजन रात तक ब्लड बैंकों के चक्कर लगाने काे मजबूर हैं। डेंगू के डंक से मरीजाें में प्लेटलेट्स इस कदर कम हाे रहा है कि मरीज के परिजनाें काे लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। औसतन प्लेटलेट्स का जीवनकाल पांच दिनों का होता है। बीते एक सप्ताह में बढ़े डेंगू के मामले के कारण ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स की स्टोरेज में कमी दर्ज की गई है। प्लेटलेट्स की कमी को दूर करने के लिये महानगर के एक निजी अस्पताल की ओर से इंटरनल डोनेशन ड्राइव की शुरुआत की गयी है, जहां अस्पताल के डॉक्टरों और अन्य कर्मचारी स्वेच्छा से रक्तदान कर रहे हैं। एएमआरआई अस्पताल के डॉ. रितम चक्रवर्ती ने बताया कि बीते कुछ दिनों से जो डेंगू के मामले सामने आए हैं उनमें अधिकांश मरीजों के प्लेटलेट्स काउंट क्रिटिकल वैल्यू से कम या फिर मरीज इंटरनल ब्लिडिंग से ग्रसित हैं। बीते दो दिनों में डेंगू के मामलों में अचानक वृद्धि आई है। जिस वजह से प्लेटलेट्स की मांग बढ़ गई है। प्लेटलेट्स तैयार करने और उसके परीक्षण में औसतन 7 से 8 घंटे तक का समय लगता है। ऐसे में अगर किसी मरीज को प्लेटलेट की आवश्यकता है और उसी दौरान अगर डोनर को लाया जाए तो करीब 8 घंटे के बाद ही मरीज को प्लेटलेट्स दी जा सकेगी, जो साधारण तौर पर संभव नहीं होता।
तरल पदार्थ के सेवन से प्लेटलेट्स की गिरावट में आती है कमी
वुडलैंड्स हॉस्पिटल की पुष्पिता एस पी मंडल ने बताया कि डेंगू ग्रसित मरीज के प्लेटलेट काउंट को रोकने के लिए उसे अस्पताल में भर्ती होने के पहले सप्ताह में अधिक मात्रा में तरल पदार्थ प्रदान दिए जाते हैं। इससे प्लेटलेट्स की गिरावट की दर काफी कम हो जाती है, जिससे मरीज के शरीर में रक्त का थक्का तैयार नहीं होता। उन्होंने बताया कि रक्त का थक्का तैयार होने से प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों में अटक जाते हैं। उन्होंने बताया कि मरीजों के प्लेटलेट काउंट 10 हजार के नीचे चले जाने पर उन्हें ट्रांसफ्यूजन के जरिए प्लेटलेट प्रदान की जाती है। सीएमआरआई अस्पताल के डॉ. अनिर्बान चट्टोपाध्याय ने बताया कि अगस्त से नवंबर महीने के बीच महानगर में डेंगू के मामले सबसे अधिक संख्या में पाए जाते हैं। हालांकि, इस वर्ष ऐसे ममालों की संख्या काफी कम है जहां मरीज को प्लेटलेट्स पाने में असुविधा हुई है।

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