Chaitra Navratri : चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए कथा, मंत्र और महत्व

Chaitra Navratri : चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए कथा, मंत्र और महत्व
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कोलकाता : नवरात्रि का प्रथम दिवस सबसे अहम माना जाता है। इस दिन घटस्थापना होती है। नवरात्रि के नौ दिवसीय पर्व पर प्रथम दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां शैलपुत्री। चूंकि ये हिमालय राज की पुत्री हैं इसलिए उन्हें शैलपुत्री (हिमालय की पुत्री) कहा जाता है। नवरात्रि के पहले दिन की अर्चना में अधिकांश योगी मन की सभी भावनाओं को तिरोहित कर, मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर लेते हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। इनका मन्त्र है:–

देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

मां शैलपुत्री की कथा

वास्तव में शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में दक्ष की बेटी सती के नाम से अवतरित हुई थीं। भगवान शिव से इनका विवाह भी हुआ, लेकिन इनके पिता ने अपने यहां एक महायज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को उनके हिस्से का यज्ञ भाग ग्रहण करने के निमंत्रित किया गया, लेकिन दक्ष ने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, जब इस आयोजन की भनक सती को लगी, तब वो इसमें सम्मिलित होने के लिए बेचैन हो गई। उन्हें पिता की शिवजी के प्रति द्वेष होने की भनक तो थी पर फिर भी वहां जाने की जिद्द करने लगीं। भगवान महादेव ने प्रयत्नपूर्वक उन्हें बहुत समझाने की चेष्ठा की, पर सती नही मानी। आखिरकार महादेव को अनुमति देनी पड़ी।

दक्ष के यज्ञ में पहुंचकर उन्हें सबकुछ बदला बदला सा लगा। मां को छोड़कर कोई भी उनके आने से प्रसन्न नहीं था। बहने उपहास और व्यंग कर रहीं थी और पिता कटु वचन बोल रहे थे। इस तरह के व्यवहार की सती ने कल्पना भी नही की थी।आमतौर पर शिवजी के सामने उपस्थित रहने वाले देवता अपने हिस्से का यज्ञ भाग खुशी से स्वीकृत कर रहे थे। इस तरह से पति को तिरस्कृत होते देख, सती को सब असहनीय लगा। उन्हें समझ आया कि आखिर शिवजी यहां आने के लिए क्यों मना कर रहे थे। क्रोध और पश्चाताप में सती ने बिना एक क्षण की देरी किए योगाग्नि (यज्ञ की अग्नि) से देह त्याग कर दिया।

भगवान महादेव ने तब उसी क्षण अपने गणों को भेज उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। वही सती इस जन्म में हिमालय राज की पुत्री शैलपुत्री अथवा पार्वती के रूप में जन्म लेती है। इस रूप में माता की अनन्त शक्तियां हैं जिनका उपयोग वे यथासमय करती हैं। आज के दिन (नवरात्रि के पहले दिन) किसी एक कुंवारी कन्या को भोजन कराया जाता है। हाल ही की परंपराओं के अनुसार आज के दिन स्त्रियां नारंगी अथवा श्वेत साड़ी पहनती हैं।

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