Chaitra Navratri 2024 Day 4: नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित, जानिए पूजा विधि और महत्व | Sanmarg

Chaitra Navratri 2024 Day 4: नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित, जानिए पूजा विधि और महत्व

कोलकाता : हिंदू धर्म में नवरात्रि के नौ दिन का विशेष महत्व होता है। नौ दिनों में हर एक दिन माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा, आराधना और मंत्रों के जाप से माता का प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है, जिनकी साधना करने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं।

मां का स्वरूप
मां कुष्मांडा के शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है, इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता इनके तेज और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रहीं हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में स्थित तेज इन्हीं की छाया है। इनकी आठ भुजाएं हैं, अतः ये अष्टभुजादेवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है और इनका वाहन सिंह है।

पूजा विधि
देवी कुष्मांडा की पूजा में कुमकुम, मौली, अक्षत, पान के पत्ते, केसर और शृंगार आदि श्रद्धा पूर्वक चढ़ाएं। सफेद कुम्हड़ा या कुम्हड़ा है तो उसे मातारानी को अर्पित कर दें, फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में घी के दीप या कपूर से मां कुष्मांडा की आरती करें। आरती के बाद उस दीपक को पूरे घर में दिखा दें ऐसा करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है। अब मां कुष्मांडा से अपने परिवार के सुख-समृद्धि और संकटों से रक्षा का आशीर्वाद लें। देवी कुष्मांडा की पूजा अविवाहित लड़कियां करती हैं, तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ती होती है। सुहागन स्त्रियां को अखंड सौभाग्य मिलता है।

मां कुष्मांडा की पूजा का महत्व
देवी कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग,शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। जिस व्यक्ति को संसार में प्रसिद्धि की चाह रहती है, उसे मां कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। देवी की कृपा से उसे संसार में यश की प्राप्ति होगी।

देवी का प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

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