

कोलकाता : ईंट, पत्थर और सिमेंट के कंक्रीट से भरे कोलकाता को हरा-भरा करने के लिए एक पहल की गयी है। इसके लिए महानगर कोलकाता में 10 लाख पाैधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। दरअसल, महानगर में हरियाली बढ़ाने के लिए काम करने वाले ग्रीन फॉर लाइफ फाउण्डेशन, कोलकाता ने यह लक्ष्य तय किया है। यहां उल्लेखनीय है कि अब तक इस एनजीओ ने महानगर में कुल 65,000 पौधे लगाये हैं। राजारहाट में 50,000 से अधिक पौधे एनजीओ द्वारा लगाये गये हैं जिन्हें अलग-अलग ग्रीन वर्ज में लगाया गया है। वर्ष 2011 से उक्त एनजीओ कोलकाता में काम कर रहा है और 2030 तक 10 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है।
सुभाष सरोवर में लगाये जायेंगे 2,000 पौधे
संस्था के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर एण्ड लीड (स्ट्रैटेजी एण्ड पार्टनरशिप) आरोन ज्यूड अराथून ने सन्मार्ग काे बताया, ‘पौधारोपण के लिए हम विभिन्न सरकारी निकायों से जमीनें ले रहे हैं। सबसे अधिक जमीन एनकेडीए व हिडको की ओर से दी गयी है। हालांकि दूसरे निकायों में जमीन की कुछ कमी सामने आ रही है।’ कोलकाता में रवींद्र सरोवर में हाल में पौधारोपण किया गया था। अब सुभाष सरोवर में 5,000 स्क्वायर फीट जमीन ली गयी है जहां 2,000 पौधे लगाये जायेंगे। इस माह के अंत तक यह काम पूरा कर लिया जायेगा।
जापान के मियावाकी स्टाइल पर जोर
मियावाकी वन, जापानी बोटनिस्ट अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित एक छोटे से क्षेत्र में घने, स्थानीय वन बनाने की प्रक्रिया है। इस तकनीक में विभिन्न प्रकार के स्थानीय वृक्षों और झाड़ियों को एक-दूसरे के बहुत पास-पास (प्रति वर्ग मीटर 3-5 पौधे) लगाये जाते हैं ताकि प्राकृतिक वन पारिस्थितिकी तंत्र का अनुकरण किया जा सके। इसका लक्ष्य एक आत्मनिर्भर वन बनाना है जो पारंपरिक वनों की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ता है और 30 गुना अधिक घना होता है।
पश्चिम बंगाल के गैर हरियाली क्षेत्र में भारी गिरावट
आईआईटी बॉम्बे और सस्त्र डीम्ड यूनिवर्सिटी द्वारा 2025 में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत ने 2015 और 2019 के बीच प्राप्त प्रत्येक 1 वर्ग किलोमीटर के लिए 18 वर्ग कि.मी. वन खो दिया। इस अवधि के दौरान तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल का लगभग आधा नुकसान हुआ। 56.3 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा, लेकिन 1,032.89 स्क्वायर कि.मी. का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया। पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया कि पश्चिम बंगाल में, 2017 से 2019 तक वन क्षेत्र में मामूली वृद्धि हुई, जबकि गैर-वनीय हरियाली (जैसे शहरी वृक्ष) में बड़ी गिरावट देखी गई।