कोलकाता : Kartik Aaryan और Kiara Advani की फिल्म Satyaprem Ki Katha आज बड़े पर्दे पर रिलीज हो चुकी है। मराठी सिनेमा में बढ़िया काम कर चुके समीर विद्वांस ने इस फिल्म को बनाया है। करण श्रीकांत शर्मा ने फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स लिखे हैं।
इस कहानी का हीरो है सत्यप्रेम। प्यार से लोग उसे सत्तू भी बुलाते है। बस कोई प्यार से बात नहीं करता। उसके घर के डाइनैमिक्स भी अलग हैं। वो और पिता घर का काम संभालते हैं। मां और बहन पर घर खर्च उठाने का जिम्मा है। फिल्म की शुरुआत में ही क्लियर हो जाता है कि सत्तू की सिर्फ एक ही तमन्ना है – उसे शादी करनी है। कथा नाम की एक लड़की मिली भी थी, लेकिन तब बात नहीं बन पाई। हालांकि अब स्थिति बदलती है। कथा का रिश्ता खुद उसके घर चलकर आता है। शादी हो जाती है। कथा अमीर घराने से आती है। उसकी सत्यप्रेम जैसे लड़के से शादी कैसे हो गई। वो उसे प्यार नहीं करती थी। ऊपर से उसने कभी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की। ये शादी किस वजह से हुई, आगे यही ट्विस्ट खुलता है। आगे की कहानी में सभी मेजर किरदार उसी से उभरने की कोशिश करते हैं।
पिछली कुछ फिल्मों के मुकाबले कार्तिक ने यहां सही काम किया है।
खास इम्पैक्ट नहीं छोड़ पाए
इस बात के लिए मेकर्स की तारीफ होनी चाहिए। उन्होंने टीजर, ट्रेलर आदि से फिल्म की असली कहानी कभी पता नहीं चलने दी। उसे सही पॉइंट पर खोला। फिल्म अपना काफी सारा वक्त इधर-उधर की चीजों में जाया कर देती है। कुछ सीन्स से ह्यूमर निकालने की कोशिश हुई, लेकिन वो अपना इम्पैक्ट नहीं छोड़ पाए। कुल जमा बात ये है कि फिल्म के फर्स्ट हाफ को टाइट किया जा सकता था। काफी गैर-जरूरी चीजें हटाई जा सकती थीं जो कहानी में सीधे तौर पर कुछ नहीं जोड़ती। फिल्म के गाने भी कम किये जा सकते थे। हर थोड़ी देर में आने पर वो कहानी में दखल देने का ही काम कर रहे थे।
Second Half में आ जायेगा मजा
हालांकि सेकंड हाफ में फिल्म अपनी पेस पकड़ लेती है। कहानी के लिहाज से अहम चीज़ों को ही जगह मिलती है। फिल्म कुछ सवाल उठाने की कोशिश करती है। जैसे एक सफल शादी में सेक्स की कितनी जगह है। एक रिलेशनशिप में किसी की भी ‘ना’ के क्या मायने हैं। एक कमर्शियल फिल्म होने के नाते ये इन पहलुओं में गहराई से नहीं उतरती। बस उनके बारे में बात भर कर पाती है। किरदारों की मनोदशा पर पड़ने वाला गहरा असर दिखाने के लिए कुछ मजबूत सीन रखे जा सकते थे।
कियारा ने की जबरदस्त एक्टिंग
सत्यप्रेम बिना सोचे बोलने वाला लड़का है। वह मानता है कि सच बोलने से पहले सोचना क्या। चालाक किस्म का इंसान नहीं है सत्या। कार्तिक उसकी शराफत को कैरी भी कर पाते हैं। हालांकि कुछ जगह सत्यप्रेम की जगह कार्तिक आर्यन भी दिखता है और ऐसा जानबूझकर भी किया गया। जैसे एक जगह ‘प्यार का पंचनामा’ से मिलता-जुलता मोनोलॉग देने लगता है। मेकर्स बस ऐसा कार्तिक के फैन्स के लिए करना चाहते थे। वरना इसका कोई अर्थ नहीं था।
फिल्म का नाम भले ही ‘सत्यप्रेम की कथा’ है। सब कुछ सत्यप्रेम की दुनिया में घट रहा है, लेकिन कहानी की हीरो कथा है। अंत के एक सीन में ये साफ भी हो जाता है जब सत्तू उसका तारणहार बनने की कोशिश नहीं करता। वो उसकी कहानी का सपोर्टिंग हीरो बनता है। कथा बनी कियारा अपने कैरेक्टर को समझती हैं, कंट्रोल में दिखती हैं। जो इमोशन वो अपने हावभाव के जरिए दिखाती है वो आप तक पहुंचते हैं। कियारा सिर्फ कमर्शियल हिरोइन नहीं, डांस वगैरह वो सही कर लेती हैं, लेकिन इन सब के पार वो अच्छी एक्टर हैं।
फिल्म के गाने कम किए जा सकते थे
‘सत्यप्रेम की कथा’ के पास अपने स्वीट मोमेंट्स हैं। गजराज राव और सुप्रिया पाठक के कार्तिक आर्यन के साथ कुछ सीन हैं जो चमक के आते हैं। हां, कुछ मौकों पर कहानी खींची भी है, लेकिन इस सब के बावजूद फिल्म के पास प्लस पॉइंट ज्यादा।