

नयी दिल्ली : नवीनतम एथनॉल निविदा के तहत अपर्याप्त खरीद आदेशों के कारण देश भर में 350 से अधिक चालू डिस्टिलरी को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है। उद्योग निकायों ने आवंटन पद्धति पर चिंता जताई है जो मौजूदा इकाइयों की तुलना में नई प्रवेशकों को तरजीह देती है। डिस्टिलरी में एथनॉल को आसवन (डिस्टिलेशन) प्रक्रियाओं के माध्यम से बनाया जाता है जिसमें गन्ने के शीरे, मक्के या अन्य बायोमास-आधारित सामग्री से प्राप्त शर्करा का किण्वन किया जाता है। तेल विपणन कंपनियों द्वारा जारी एथनॉल आपूर्ति वर्ष 2025-26 निविदा हितधारकों की आलोचना का सामना कर रही है जिनका आरोप है कि आवंटन मानदंड कृत्रिम असंतुलन उत्पन्न कर रहा है जबकि पूर्व सरकारी प्रतिबद्धताओं के तहत स्थापित डिस्टिलरी को दरकिनार कर रहा है। निविदा दस्तावेज (#1000442332) के अनुसार जिन क्षेत्रों में स्थानीय डिस्टिलरी के प्रस्ताव आवश्यकताओं से कम हैं, उन्हें घाटे वाले क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया गया है और सभी स्थानीय प्रस्तावों को आवंटन के लिए पूर्ण माना जाता है। उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि यह दृष्टिकोण पड़ोसी राज्यों में अधिशेष क्षमता की उपेक्षा करता है, जिनमें से अधिकतर दीर्घकालिक उठाव समझौतों (एलटीओए) और ओएमसी द्वारा स्वयं प्रोत्साहित रुचि की अभिव्यक्ति पहल के तहत स्थापित किए गए थे।
नीतिगत हस्तक्षेप की मांग : उद्योग निकाय अब तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि घाटे वाले क्षेत्रों में नए निवेश को प्रोत्साहित करने से पहले मौजूदा परिचालन क्षमता का इष्टतम उपयोग किया जाए। एथनॉल कार्यक्रम के मूल लक्ष्यों में स्थानीय उत्पादन के माध्यम से क्षेत्रीय घाटे को दूर करना, परिवहन लागत को कम करना और किसानों को समर्थन देना शामिल है। हालांकि हितधारकों का कहना है कि वर्तमान में इसका जिस तरह से कार्यान्वयन हो रहा है वह बाजार में विकृतियां उत्पन्न कर रहा है।
समग्र खरीद मॉडल की आवश्यकता : अनाज एथनॉल निर्माता संघ (जीईएमए) के अध्यक्ष सी. के. जैन ने कहा, एक अधिक समग्र खरीद मॉडल की आवश्यकता है जो राज्यों में अधिशेष उपलब्धता, पहले से मौजूद क्षमताओं एवं निवेशों, डिस्टिलरी के साथ पूर्व समझौतों तथा प्रतिबद्धताओं पर विचार करता हो। मौजूदा आवंटन प्रणाली न केवल आर्थिक रूप से अक्षम है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी प्रतिकूल है क्योंकि यह मौजूदा बुनियादी ढांचे की उपेक्षा करते हुए अनावश्यक क्षमता के निर्माण को बढ़ावा देती है।
स्थिरता खतरे में : कई प्रभावित डिस्टिलरी ने एथनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत सरकारी प्रतिबद्धताओं के आधार पर भारी निवेश किया है, जिसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करना एवं गन्ना और अनाज की खरीद के माध्यम से किसानों का समर्थन करना है। एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम ऊर्जा सुरक्षा के लिए सरकार के प्रयासों के तहत एक प्रमुख पहल है और हाल के वर्ष में पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण के लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। विशेषज्ञों ने हालांकि आगाह किया कि कि समान मांग वितरण के बिना, भारत के एथनॉल परिवेश की दीर्घकालिक स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। प्रकाशित आवंटनों से संकेत मिलता है कि कम से कम 350 डिस्टिलरी को पर्याप्त ठेके नहीं मिले हैं जिससे खरीद प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।