

नयी दिल्ली : पूंजी बाजार नियामक सेबी की प्रवर्तन सीमा को प्रतिभूति बाजार संहिता (एसएमसी) विधेयक स्पष्ट रूप से तय करता है और निरीक्षण तथा जांच पर आठ साल की वैधानिक सीमा लगाता है। इसका मकसद बाजार भागीदारों पर लंबे समय तक बने रहने वाले नियामकीय दबाव को रोकना है। हालांकि आठ साल की यह सीमा उन मामलों पर लागू नहीं होगी, जिनका प्रतिभूति बाजार पर प्रणालीगत प्रभाव पड़ता है। समय सीमा तय करने के अलावा यह विधेयक समयबद्ध प्रवर्तन ढांचा भी पेश करता है। इसके तहत सेबी को 180 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होगी। साथ ही निवेशक संरक्षण को मजबूत करते हुए लोकपाल आधारित शिकायत निवारण तंत्र की शुरुआत की गई है।
रिजर्व कोष में रखना होगा : पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश किए गए इस विधेयक के अनुसार सेबी को अपने वार्षिक अधिशेष का 25 प्रतिशत खर्चों के लिए एक रिजर्व कोष में रखना होगा। बाकी अधिशेष भारत की समेकित निधि में स्थानांतरित किया जाएगा।
पुराने लेनदेन को कानूनी निश्चितता : मामले से परिचित एक व्यक्ति के अनुसार आठ साल की यह सीमा पुराने लेनदेन को कानूनी निश्चितता देगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि संस्थाएं पुराने मामलों से अनिश्चित काल तक परेशान न रहें। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान बाजार भागीदारों को अधिक कानूनी स्पष्टता देने के लिए लाया गया है।