पांच साल बाद आरबीआई ने रेपो दर में की कटौती

घटेगी लोगों के कर्ज की लागत
पांच साल बाद आरबीआई ने रेपो दर में की कटौती
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मुंबईःसुस्त पड़ रही अर्थव्यवस्था को गति देने के मकसद से लगभग पांच साल बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया। रेपो दर घटने से मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कमी होने की उम्मीद है। आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि समिति ने आम सहमति से रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती का निर्णय किया है। एमपीसी में अपने रुख को ‘तटस्थ’ बनाये रखने पर सहमति बनी है।

क्या है रेपो दरः रेपो दर वह प्रमुख ब्याज है, जिसपर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये इस दर का उपयोग करता है। रेपो दर अधिक होने का मतलब है कि कर्ज की लागत अधिक होगी। यानी ग्राहकों को अधिक ब्याज पर कर्ज मिलेगा। वहीं इसके उलट, रेपो दर कम होने से आवास, कार और व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज दर घटने की उम्मीद रहती है।

रेपो दर बचत और निवेश उत्पादों पर रिटर्न भी तय करती है। उच्च रेपो दर से सावधि जमा और अन्य बचत उत्पादों पर बेहतर रिटर्न मिल सकता है, क्योंकि बैंक जमा को आकर्षित करने के लिए उच्च ब्याज दर की पेशकश करते हैं। दूसरी ओर, कम रेपो दर इन बचत उत्पादों पर अर्जित ब्याज को कम कर सकती हैं।

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